SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२३६ भगवती सूत्र-श. २५ उ. ३ गंस्थान के प्रदेश प्रश्न-वट्टे णं भंते ! संठाणे दवट्टयाए ? उत्तर-एवं चेव, एवं जाव आयए । भावार्थ-२३ प्रश्न-हे भगवन् ! परिमण्डल संस्थान द्रव्यार्थ रूप से कृतयुग्म है, व्योज है, द्वापरयुग्म है अथवा कल्योज है ? . २३ उत्तर-हे गौतम ! कृतयुग्म नहीं, त्र्योज नहीं, द्वापरयुग्म भी नहीं, परन्तु कल्योज है। प्रश्न-हे भगवन् ! वृत्त संस्थान द्रव्यार्थ रूप से कृतयुग्म है, इत्यादि ? उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत् ! इसी प्रकार यावत् आयत संस्थान पर्यंत। २४ प्रश्न-परिमंडला णं भंते ! संठाणा दवट्ठयाए किं कडजुम्मा, तेयोया-पुच्छा। २४ उत्तर-गोयमा ! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा, सिय तेयोगा, सिय दावरजुम्मा, सिय कलियोगा, विहाणादेसेणं णो कडजुम्मा, णो तेयोगा, णो दावरजुम्मा, कलियोगा एवं जाव आयया । भावार्थ-२४ प्रश्न-हे भगवन् ! परिमण्डल संस्थान द्रव्यार्थ रूप से कृतयुग्म है, व्योज है, द्वापरयुग्म है या कल्योज है ? २४ उत्तर-हे गौतम ! ओघादेश से-सामान्यतः सर्व समुदित रूप में कदाचित कृतयुग्म, कदाचित् व्योज, कदाचित् द्वापरयुग्म और कदाचित् कल्योज होते हैं। विधानादेश--प्रत्येक की अपेक्षा कृतयुग्म नहीं, व्योज नहीं, द्वापरयग्म नहीं, किन्तु कल्योज हैं, यावत् आयत संस्थान पर्यन्त । २५ प्रश्न-परिमंडले णं भंते ! संठाणे पएसट्टयाए कि कडजुम्मे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy