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भगवती सूत्र-श. २५ उ. ३ गंस्थान के प्रदेश
प्रश्न-वट्टे णं भंते ! संठाणे दवट्टयाए ? उत्तर-एवं चेव, एवं जाव आयए ।
भावार्थ-२३ प्रश्न-हे भगवन् ! परिमण्डल संस्थान द्रव्यार्थ रूप से कृतयुग्म है, व्योज है, द्वापरयुग्म है अथवा कल्योज है ?
. २३ उत्तर-हे गौतम ! कृतयुग्म नहीं, त्र्योज नहीं, द्वापरयुग्म भी नहीं, परन्तु कल्योज है।
प्रश्न-हे भगवन् ! वृत्त संस्थान द्रव्यार्थ रूप से कृतयुग्म है, इत्यादि ? उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत् ! इसी प्रकार यावत् आयत संस्थान पर्यंत।
२४ प्रश्न-परिमंडला णं भंते ! संठाणा दवट्ठयाए किं कडजुम्मा, तेयोया-पुच्छा।
२४ उत्तर-गोयमा ! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा, सिय तेयोगा, सिय दावरजुम्मा, सिय कलियोगा, विहाणादेसेणं णो कडजुम्मा, णो तेयोगा, णो दावरजुम्मा, कलियोगा एवं जाव आयया ।
भावार्थ-२४ प्रश्न-हे भगवन् ! परिमण्डल संस्थान द्रव्यार्थ रूप से कृतयुग्म है, व्योज है, द्वापरयुग्म है या कल्योज है ?
२४ उत्तर-हे गौतम ! ओघादेश से-सामान्यतः सर्व समुदित रूप में कदाचित कृतयुग्म, कदाचित् व्योज, कदाचित् द्वापरयुग्म और कदाचित् कल्योज होते हैं। विधानादेश--प्रत्येक की अपेक्षा कृतयुग्म नहीं, व्योज नहीं, द्वापरयग्म नहीं, किन्तु कल्योज हैं, यावत् आयत संस्थान पर्यन्त ।
२५ प्रश्न-परिमंडले णं भंते ! संठाणे पएसट्टयाए कि कडजुम्मे
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