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(४)
विषय
अवग्रह ( आज्ञा ) पंचक
अलोक में महद्धिक देव भी हाथ आदि नहीं
पसार सकता
अवधिज्ञान के भेदादि पर प्रज्ञापना पद ३३ का निर्देश
शतक उद्देशक भाग
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अठारह पाप स्थान यावत् अनाकार उपयोग युक्त वही जीव और जीवात्मा है अठारह पाप स्थान आदि जीव अजीव द्रव्यों में
कुछ जीव के उपभोग में आते हैं, कुछ नहीं १८ अनगार तलवार आदि अस्त्रधारा को अवगाहन करें, पर छिन्न-भिन्न नहीं होते अवगाहना के ४४ बोलों की अल्पाबहुत्व अवसर्पिणी काल कहाँ है और कहाँ नहीं है ? अल्पबहुत्व - गति, इंद्रिय, काय जीव, पुद्गलादि
तथा आयुष्य कर्म के बंधक अबंधकादि अस्तिकाय चार व जीवास्तिकाय के मध्य प्रदेशों की अवगाहना
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(आ)
आत्मारंभादि चार के जीवादि आश्रित प्रश्न आवासों की संख्या । (श. ६ उ. ६ भाग २ पृ. १०२४ तथा श. २५ उ. ३ भाग ७ पू. ३२ ५५ पर भी )
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धाकर्मी वस्तु के सेवन का फल । (श. ७ उ ८ भाग ३ पृ. ११८७ पर भी )
आयुष्य सहित जीव परभव में उत्पन्न होता है आत्म, अनन्तर, परम्पर आगम ये प्रमाण के अन्तर्गत आधाकर्मादि दस सदोष स्थान सेवन का फल
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६ २६९२ – ९५
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२५१९ – २१
२५८४-८५
२५८८ – ८६
२६०७-१२
२७५०-५१
२७८१ - ८५
२९०० -- २
३२५८-- ६२
३३३३-३५
८३-९१
२२२-२७
३५४-५८
७९०-९३
८१९ – २१
८५८ - ८६१
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