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________________ ३८०० - श. ४१ उ. ५ . २ उत्तर-णो इणढे समढे । एवं तेओएण वि समं, एवं दावरजुम्मेण वि समं । सेसं जहा पढमुद्देसए जाव वेमाणिया । * 'सेवं भंते ! सेवं भंते !' ति ४१-४ ॐ ॥ चउत्थो उद्देसो समत्तो।। भालार्थ-२ प्रश्न-हे भगवन् ! वे जीव जिस समय कल्योज राशि हैं, उस समय कृतयुग्म राशि होते हैं और जिस समय कृतयुग्म राशि होते हैं, उस समय कल्योज राशि होते हैं ? २ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं। इसी प्रकार योज और द्वापरयुग्म के साथ भी जानो। शेष प्रथमोद्देशक के समान यावत् वैमानिक पर्यन्त । . ॥ इकतालीसवें शतक का चौथा उद्देशक सम्पूर्ण ॥ .. शतक ४१ उद्देशक ५ १ प्रश्न-कण्हलेस्सरासीजुम्मकडजुम्मणेरड्या णं भंते ! कओ . उववज्जति । १ उत्तर-उववाओ जहा धूमप्पभाए, सेसं जहा पढमुद्देसए । असुरकुमाराणं तहेव, एवं जाव वाणमंतराणं । मणुस्साण वि जहेव णेरइयाणं 'आयअजसं उवजीवंति ।' अलेस्सा, अकिरिया, तेणेव भवग्गहणेणं सिझंति एवं ण भाणियव्वं सेसं जहा पढमुद्देसए । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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