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________________ ३७६८ भगवती सूत्र - श ४१ उ ३ उस समय त्र्योज राशि होते हैं ? ३ उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं । कल्योज राशि के साथ मी इसी प्रकार । शेष पूर्ववत् यावत् वैमानिक पर्यन्त । सभी का उपपात प्रज्ञापना सूत्र के छठे व्युत्क्रान्ति पद के अनुसार । || इकतालीसवें शतक का दूसरा उद्देशक सम्पूर्ण || शतक ४९ उद्देशक ३ १ प्रश्न - रासी जुम्मदावर जुम्मणेरड्या णं भंते ! कओ उववज्जंति ? १ उत्तर - एवं चेव उद्देसओ । णवरं परिमाणं दो वा छ वा दस वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उववज्जंति, संवेहो ।' भावार्थ - १ प्रश्न - हे भगवन् ! राशि युग्म में द्वापरयुग्म राशि नैरयिक कहाँ से आ कर उत्पन्न होते हैं ? । १ उत्तर - हे गौतम! उद्देशक पूर्ववत् । परिमाण -दो, छह, दस, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं। संवेध भी जानना चाहिये । २ प्रश्न - ते णं भंते! जीवा जं समयं दावरजुम्मा तं समयं कड जुम्मा, जं समयं कडजुम्मा तं समयं दावरजुम्मा ? २ उत्तर - णो इट्टे समट्ठे । एवं ते ओएण वि समं, एवं कलिओगेण वि समं । सेसं जहा पढमुद्देसए जाव वेमाणिया । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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