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भगवती सूत्र - श ४१ उ ३
उस समय त्र्योज राशि होते हैं ?
३ उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं । कल्योज राशि के साथ मी इसी प्रकार । शेष पूर्ववत् यावत् वैमानिक पर्यन्त । सभी का उपपात प्रज्ञापना सूत्र के छठे व्युत्क्रान्ति पद के अनुसार ।
|| इकतालीसवें शतक का दूसरा उद्देशक सम्पूर्ण ||
शतक ४९ उद्देशक ३
१ प्रश्न - रासी जुम्मदावर जुम्मणेरड्या णं भंते ! कओ उववज्जंति ? १ उत्तर - एवं चेव उद्देसओ । णवरं परिमाणं दो वा छ वा दस वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उववज्जंति, संवेहो ।'
भावार्थ - १ प्रश्न - हे भगवन् ! राशि युग्म में द्वापरयुग्म राशि नैरयिक कहाँ से आ कर उत्पन्न होते हैं ?
।
१ उत्तर - हे गौतम! उद्देशक पूर्ववत् । परिमाण -दो, छह, दस, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं। संवेध भी जानना चाहिये ।
२ प्रश्न - ते णं भंते! जीवा जं समयं दावरजुम्मा तं समयं कड जुम्मा, जं समयं कडजुम्मा तं समयं दावरजुम्मा ?
२ उत्तर - णो इट्टे समट्ठे । एवं ते ओएण वि समं, एवं कलिओगेण वि समं । सेसं जहा पढमुद्देसए जाव वेमाणिया ।
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