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भगवती सूत्र-श. ४१ उ. २
__* 'सेवं भंते ! सेवं भंते !' त्ति ॥ इक्कचत्तालीसइमे रासीजुम्मसए पढमो उद्देसओ समत्तो।
भावार्थ-२३ प्रश्न-हे भगवन ! यदि वे सक्रिय होते हैं, तो उसी मव ' में सिद्ध होते हैं, यावत् सभी दुःखों का अन्त करते हैं ?
२३ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं।
वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक देव का कथन नरयिक के समान है।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैकह कर गोतम स्वामी यावत् विचरते हैं ।
विवेचन-युग्मशब्द, युगलवाचक भी है । अतः उसके साथ 'राशि' विशेषण लगाया गया है । जो राशि-युग्म हो और कृतयुग्म परिमाण हो, उन्हें राशि-युग्म कृतयुग्म कहते हैं ।
यश का हेतु 'संयम' है । इसलिये यहां कारण में कार्य का उपचार कर के संयम को 'यश' शब्द से कहा है । समी जीवों की उत्पत्ति आत्म-अयश अर्थात् आत्म-असंयम से ही होती है. क्योंकि उत्पत्ति में सभी जीव अविरत होते हैं ।
॥ इकतालीसवें शतक का प्रथम उद्देशक सम्पूर्ण ॥
शतक ४१ उद्देशक २
१ प्रश्न-रासीजुम्मतेओयणेरइया णं भंते ! कओ उववज्जति ?
१ उत्तर-एवं चेव उद्देसओ भाणियन्यो । णवरं परिमाणं तिण्णि वा सत्त वा एक्कारस वा पण्णरस वा संखेजा वा असंखेजा वा
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