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________________ भगवती सूत्र-श. ४१ उ १ ३७८९ ४ उत्तर-गोयमा ! संतरं पि उववजति, णिरंतरं पि उववजति । संतरं उववजमाणा जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं असंखेजा समया अंतरं कटु उववज्जति । णिरंतरं उववजमाणा जहण्णेणं दो समया, उक्कोसेणं असंखेना समया अणुसमयं अविरहियं णिरंतरं उववज्जंति। भावार्थ-४ प्रश्न-हे भगवन् ! वे जीव सान्तर उत्पन्न होते हैं, या निरन्तर? ४ उत्तर-हे गौतम ! वे सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी। यदि सान्तर उत्पन्न होते हैं, तो जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात समय का अन्तर कर के उत्पन्न होते हैं। निरन्तर उत्पन्न होते हुए जघन्य दो समय और उत्कृष्ट असंख्यात समय तक निरन्तर अनुसमय अविरहित उत्पन्न होते हैं । . ५ प्रश्न-ते णं भंते ! जीवा जं समयं कडजुम्मा तं समयं तेओगा, जं समयं तेओगा तं समयं कडजुम्मा ? ... ५ उत्तर-णो इणटे समटे । भावार्थ-५ प्रश्न-हे भगवन् ! वे जीव जिस समय कृतयुग्म राशि होते हैं, उसी समय व्योज राशि होते हैं और जिस समय व्योज राशि होते हैं, उसी समय कृतयुग्म राशि होते हैं। ५ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं। ६ प्रश्न-जं समयं कडजुम्मा तं समयं दावरजुम्मा, जं समयं दावरजुम्मा तं समयं कडजुम्मा ? ६ उत्तर-णो इणटे समढे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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