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भगवती सूत्र - श ४० अवांतर शतक १५
समडे, सेसं जहा कण्हलेएससए जाव अनंतखुत्तो । एवं सोलससु
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विजुम्मेसु | 'सेवं भंते •
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भावार्थ - १ प्रश्न - हे भगवन् ! अभवसिद्धिक कृतयुग्मकृतयुग्म राशि संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव कहां से आते हैं ?
१ उत्तर - हे गौतम! अनुत्तर विमानों को छोड़ कर शेष सभी स्थान से । परिमाण, अपहार, ऊँचाई, बन्ध, वेद, वेदन, उदय और उदीरणा कृष्णलेश्या शतक के समान हैं। वे कृष्णलेशी यावत् शुक्ललेशी होते हैं । वे सम्यग्दृष्टि और सम्यग्मध्यादृष्टि नहीं होते, मात्र मिथ्यादृष्टि हैं । ज्ञानी नहीं, अज्ञानी हैं । सब कृष्णलेशी शतक के अनुसार विशेष में वे विरत और विरताविरत नहीं होते, अविरत होते हैं । संचिट्ठा काल और स्थिति औधिक उद्देशक के अनुसार । प्रथम के पांच समुद्घात होते हैं । उद्वर्तना अनुत्तर विमानों के अतिरिक्त पूर्ववत् - जाननी चाहिये ।
प्रश्न - हे भगवन् ! क्या सभी प्राण यावत् सत्त्व पहले यहां उत्पन्न हुए हैं ? उत्तर - हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं। शेष कृष्णलेश्या शतक के अनुसार, यावत् 'पहले अनन्त बार उत्पन्न हुए है' पर्यन्त । इस प्रकार सोलह युग्म जानना चाहिये ।
२ प्रश्न - पढमसमयअभवसिद्धियकडजुम्मकडजुम्मसण्णिपंचिंदिया णं भंते! कओ उववज्जंति ?
२ उत्तर - जहा सण्णीर्ण पढमसमयउद्देसए तहेव । णघरं सम्मतं, सम्मामिच्छत्तं, णाणं च सव्वत्थ णत्थि, सेसं तहेव | 'सेवं भंते ! सेवं भंते! ति । एवं एत्थ वि एकारस उद्देसगा कायव्वा पढम-तइयपंचमा एकगमा, सेसा अटू वि एकगमा । ' सेवं भंते ! सेवं भंते !'
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