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________________ ३७८२ . भगवती सूत्र-श. ४० अवान्तर शतक १५ । भणियाणि, एवं भवसिद्धिएहि वि सत्त सयाणि कायव्वाणि । णवरं सत्तसु वि सएसु सव्वपाणा जाव णो इणटे समटे, सेसं तं चेव । ॥ चत्तालीसइमे सए चोदसंमं सण्णिमहाजुम्मसयं समत्तं ॥ भावार्थ-संज्ञी पञ्चेन्द्रिय जीवों के सात औधिक शतक कहे हैं, उसी प्रकार भवसिद्धिक जीवों के भी कहने चाहिये । सातों शतक में 'सर्व प्राण यावत् उत्पन्न हुए है ? उत्तर-'यह अर्थ समर्थ नहीं है । शेष पूर्ववत् । ॥ चालीसवें शतक के ११-१४ अवान्तर शतक सम्पूर्ण ॥ अवान्तर शतक १५ १ प्रश्न-अभवसिद्धियकडजुम्मकडजुम्मसणिपंचिंदिया णं भंते ! कओ उक्वज्जति ? १ उत्तर-उववाओ तहेव अणुत्तरविमाणवज्जो । परिमाणं, अवहारो, उच्चत्तं, बंधो, वेदो, वेदणं, उदओ, उदीरणा य जहा कण्हलेस्समए । कण्हलेस्सा वा जाव सुकलेस्सा वा । णो सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, णो सम्मामिच्छादिट्ठी। णो णाणी, अण्णाणी-एवं जहा कण्हलेस्ससए । णवरं णो विरया, अविरया, णो विरयाविरया। संचिटणा ठिई य जहा ओहिउद्देसए । समुग्धाया आदिल्लगा पंच । उवट्टणा तहेव अणुत्तर विमाणवज्जं । सव्वपाणा० जाव णो इण? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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