SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 629
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र - श. ४० अवान्तर शतक ८ भावार्थ- शुक्ललेश्या शतक भी औधिक शतक के समान है । संचिट्ठणा काल और स्थिति कृष्णलेश्या शतक के समान । शेष पूर्ववत्, यावत् पहले अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं। विवेचन - शुक्ललेश्या की स्थिति पूर्वभव के अन्तिम अन्तर्मुहूर्त सहित अनुत्तर देवों की उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की स्थिति की अपेक्षा जाननी चाहिये । ॥ चालीसवें शतक का सातवां अवान्तर शतक सम्पूर्ण ॥ ३७८० अवान्तर शतक ८ १ प्रश्न - भवसिद्धियकाडजुम्मकडजुम्मसष्णिपंचिंदिया णं भंते ! कओ उववज्जंति ? १ उत्तर - जहा पढमं सणितयं तहा यव्वं भवसिद्धियाभिलावेणं । णवरं - प्रश्न - सव्वपाणा० ? उत्तर - णो इट्ठे समट्ठे, सेसं तहेव । सेवं भंते! ० । ॥ चत्तालीसहमे सए अट्टमं सष्णिमहाजुम्मसयं समत्तं ॥ भावार्थ - १ प्रश्न - हे भगवन् ! कृतयुग्मकृतयुग्म राशि भवतिद्धिक संज्ञी पञ्चेन्द्रिय जीव कहाँ से आ कर उत्पन्न होते हैं ? १ उत्तरर - हे गौतम! प्रथम संज्ञी शतक के अनुसार मवसिद्धिक के आलापक से यह शतक जानना चाहिये । विशेष में प्रश्न - हे भगवन् ! क्या सभी प्राण भूत जीव-सत्त्व यहां पहले उत्पन्न हुए हैं ? उत्तर - हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । शेष पूर्ववत् । ॥ चालीसवें शतक का आठवां अवान्तर शतक सम्पूर्ण ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy