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भगवती सूत्र-श. ४० अवांतर शतक २
कृतयुग्मकृतयुग्म राशि संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों का अवस्थिति काल जघन्य एक समय है, क्योंकि समय के बाद संख्यान्तर होने का संभव है और उत्कृष्ट सातिरेक • सागरोपम शत-पृथक्त्व है, क्योंकि इसके बाद वे संज्ञा पंचेन्द्रिय नहीं होते ।
संज्ञी पंचेन्द्रियों में पहले के छह समुद्घात होते हैं । सातवां केवली-समुद्घात तो केवलज्ञानियों में होता है और वे अनिन्द्रिय होते हैं ।
॥ चालीसवें शतक का पहला अवांतर शतक सम्पूर्ण ॥
अवान्तर शतक २ १ प्रश्न-कण्हलेस्सकडजुम्मकडजुम्मसण्णिपंचिंदिया णं भंते ! कओ उपवनंति ?
१ उत्तर-तहेव जहा पढमुद्देसओ सण्णीणं । णवरं बंधो वेओ उदयी उदीरणा लेस्सा बंधग-सण्णा कसाय वेयबंधगा य एयाणि जहा बेइंदियाणं । कण्हलेस्साणं वेओ तिविहो, अवेयगा णत्थि । संचिट्ठणा जहण्णेणं एक्कं समय, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्त. मन्भहियाई । एवं ठिईए वि । णवरं ठिईए अंतोमुहुत्तमब्भहियाई ण भण्णंति । सेसं जहा एएसिं चेव पढमे उद्देसए जाव अणंतखुत्तो। एवं सोलससु वि जुम्मसु । 'सेवं भंते ।
___ भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! कृष्णलेश्या वाले कृतयुग्मकृतयुग्म राशि संशी पचेन्द्रिय जीव कहां से आते हैं ?
१ उत्तर-हे गौतम ! संज्ञी के प्रथम उद्देशक के अनुसार । विशेष में
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