SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 603
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७५४ भगवती सूत्र-श. ३५ अवान्तर शतक २ प्रश्न-ते णं भंते ! जीवा कण्हलेस्सा ? उत्तर-हंता कण्हलेस्सा, सेसं तं चेव ॥ ३५-२-२॥ भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! प्रथम समय के कृष्णलेश्या वाले कृतयुग्मकृतयुग्म एकेंद्रिय जीव कहां से आते हैं ? १ उत्तर-हे गौतम ! प्रथम समय के उद्देशक के अनुसार । विशेष मेंप्रश्न-हे भगवन् ! वे जीव कृष्णलेश्या वाले हैं ? उत्तर-हां, गौतम ! वे जीव कृष्णलेश्या वाले हैं। शेष पूर्ववत् । ३५-२-२। -एवं जहा ओहियसए एक्कारस उद्देसगा भणिया तहा कण्हलेस्ससए वि एकारस उद्देसगा भाणियन्वा । पढमो तइओ पंचमो य सरिसगमा, सेसा अट्ठ वि सरिसगमा । णवरं चउत्थ-अट्ठम दसमेसु उववाओ णत्थि देवस्स ॥ ३५-२-११ ॥ . ॥ पणतीसइमे सए बिइयं एगिदियमहाजुम्मसयं समत्तं ॥ -औधिक शतक के ग्यारह उद्देशक के समान कृष्णलेश्या वाले शतक में भी ग्यारह उद्देशक कहना । पहला, तीसरा और पांचवां, ये तीन उद्देशक एक समान हैं, शेष आठ उद्देशक एक समान हैं। विशेष में चौथा, आठवां और दसवां, इन तीन उद्देशकों में देवों की उत्पत्ति नहीं होती ॥३५-२-११ ॥ 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैकह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। ॥ पैंतीसवें शतक का द्वितीय अवांतर शतक सम्पूर्ण ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy