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________________ ३७४४ भगवती सूत्र - श. ३५ अवान्तर शतक १ उ. १ आते हैं ? १९ उत्तर - हे गौतम ! उपपात पूर्ववत । परिमाण प्रतिसमय पन्द्रह, संख्यात, असंख्यात या अनन्त उत्पन्न होते हैं । शेष पूर्ववत्, यावत् 'पहले अनेक बार अथवा अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं' पर्यन्त । इस प्रकार सोलह महायुग्मों का एक ही प्रकार का कथन समझना चाहिये । परिमाण में विशेषता है । यथा योजद्वापरयुग्म में परिमाण - चौदह, संख्यात, असंख्यात या अनन्त उत्पन्न होते हैं । त्र्योजकल्योज में तेरह, संख्यात, असंख्यात या अनन्त उत्पन्न होते हैं । द्वापरयुग्मकृतयुग्म में आठ, संख्यात, असंख्यात या अनन्त उत्पन्न होते हैं । द्वापरयुग्मयोज में ग्यारह, संख्यात, असंख्यात या अनन्त उत्पन्न होते हैं । द्वापरयुग्मद्वापरयुग्म में दस, संख्यात, असंख्यात या अनन्त उत्पन्न होते हैं । द्वापरयुग्मकल्योज में नौ, संख्यात, असंख्यात या अनन्त उत्पन्न होते हैं । फल्योजकृतयुग्म में चार, संख्यात, असंख्यात या अनन्त उत्पन्न होते हैं । कल्योजग्योज में सात, संख्यात, असंख्यात या अनन्त उत्पन्न होते हैं । कल्योजद्वापरयुग्म में छह, संख्यात, असंख्यात या अनन्त उत्पन्न होते हैं । २० प्रश्न - कलिओगकलिओगए गिंदिया णं भंते ! कओ उववजंति ? २० उत्तर - उववाओ तहेव । परिमाणं पंच वा संखेज्जा वा असं खेजा वा अनंता वा उववज्जति । सेसं तहेव जाव अनंतखुत्तो । 'सेवं भंते । सेवं भंते' ! ति ॥ पणतीस मे स पढमो उद्देसो समत्तो ॥ भावार्थ - २० प्रश्न - हे भगवन् ! कल्योजकल्योज राशि एकेंद्रिय जीव कहां से आते हैं ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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