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________________ अवान्तर शतक १ उद्देशक ३ १ प्रश्न-कहविहा णं भंते ! परंपरोवण्णगा एगिंदिया पण्णता ? १ उत्तर-गोयमा ! पंचविहा परंपरोक्वण्णगा एगिदिया पण्णत्ता, त जहा-पुढविकाइया-भेओ चउक्कओ जाव वणस्सइकाइय त्ति । भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! परम्परोपपन्नक एकेन्द्रिय कितने प्रकार के कहे हैं ? १ उत्तर-हे गौतम ! परम्परोपपन्नक एकेन्द्रिय पांच प्रकार के कहे हैं। यथा-पृथ्वीकायिक आदि और उनके चार-चार भेद यावत् वनस्पतिकायिक पर्यन्त। २ प्रश्न-परंपरोववण्णगअपजत्तसुहुमपुढविकाइए णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए जाव पचन्छिमिल्ले चरिमंते अपजत्तसुहुमपुढविकाइयत्ताए उववजित्तए ? २ उत्तर-एवं एएणं अभिलावेणं जहेव पढमो उद्देसओ जाव लोगचरिमंतो ति। . भावार्थ-२ प्रश्न-हे भगवन् ! जो परम्परोपपन्नक अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वी कायिक जीव, रत्नप्रभा पृथ्वी के पूर्व चरमान्त में मरण-समुद्घात कर के रत्नप्रभा पृथ्वी के यावत् पश्चिम चरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिकपने उत्पन्न हो, तो वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? २ उत्तर-हे गौतम ! इस अभिलाप से प्रथम उद्देशकानुसार यावत् लोक के चरमान्त पर्यन्त । ३ प्रश्न-कहिं णं भंते ! परंपरोक्वण्णगबायरपुढविकाइयाणं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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