SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 565
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७१६ भगवती मूत्र-श. ३४ अवान्तर शतक १ उ. १ विग्रहगति गोयमा ! जाव वेमायविसेसाहियं कम्मं पकरेंति । * 'सेवं भंते ! सेवं भंते' ! त्ति २ जाव विहरइ ॥ चोत्तीसहमे सए पढमे एगिंदियस पढमो उद्देसो समत्तो ॥ भावार्थ - ३३ प्रश्न - हे भगवन् ! १ तुल्य ( समान) स्थिति वाले एकेन्द्रिय जीव, तुल्य और विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं २ अथवा तुल्य स्थिति वाले एकेन्द्रिय जीव, भिन्न विशेषाधिक कर्म-बन्ध करते हैं ३ अथवा भिन्न-भिन्न स्थिति वाले एकेन्द्रिय जीव तुल्य विशेषाधिक कर्म-बन्ध करते हैं और ४ अथवा मित्रभिन्न स्थिति वाले एकेन्द्रिय जीव भिन्न विशेषाधिक कर्म-बन्ध करते हैं ? ३३ उत्तर - हे गौतम! तुल्य स्थिति वाले कुछ एकेन्द्रिय जीव तुल्य और विशेषाधिक कर्म-बन्ध करते हैं । कुछ तुल्य स्थिति वाले एकेन्द्रिय जीव भिन्न-भिन्न विशेषाधिक कर्म-बन्ध करते हैं । कई भिन्न-भिन्न स्थिति वाले एकेन्द्रिय जीव, तुल्य विशेषाधिक कर्म-बन्ध करते हैं और कई भिन्न-भिन्न स्थिति वाले भिन्न-भिन्न विशेषाधिक कर्म-बन्ध करते हैं । प्रश्न - हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहा कि कितने ही एकेन्द्रिय जीव तुल्य स्थिति वाले यावत् भिन्न-भिन्न विशेषाधिक कर्म-बन्ध करते हैं । उत्तर - हे गौतम! एकेन्द्रिय जीव चार प्रकार के कहे हैं। यथा-१ कई जीव समान आयु वाले और साथ उत्पन्न हुए २ कितने ही समान आयु वाले और विषम उत्पन्न हुए ३ कितने ही विषम आयु वाले और साथ उत्पन्न हुए और ४ कुछ विषम आयु वाले और विषम उत्पन्न हुए। जो समान आयु वाले और समान उत्पत्ति वाले हैं, वे तुल्य स्थिति वाले तुल्य एवं विशेषाधिक कर्मबन्ध करते हैं । जो समान आयु और विषम उत्पत्ति वाले हैं, वे तुल्य स्थिति वाले विमात्रा विशेषाधिक कर्म-बन्ध करते हैं। जो जीव विषम आयु और समान उत्पत्ति वाले हैं, वे विमात्रा स्थिति वाले तुल्य विशेषाधिक कर्म-बन्ध करते हैं और जो विषम आयु और विषम उत्पत्ति वाले हैं, वे विमात्रा स्थिति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy