________________
३७१०
भगवती सूत्र-श. ३४ अवान्तर ससक १ उ. १ विग्रहगति
कर के दक्षिण चरमान्त में ही उपपात इत्यादि पूर्ववत् यावत् पर्याप्त सूक्ष्म वनस्पतिकायिक का उपपात पर्याप्त सूक्ष्म वनस्पतिकायिक में दक्षिण चरमान्त पर्यन्त । इसी प्रकार दक्षिण चरमान्त में समुद्घात कर के पश्चिम चरमान्त में उपपात होता है, इनमें दो, तीन या चार समय की विग्रहगति होती है, शेष पूर्ववत् । जिस प्रकार स्वस्थान में कहा, उसी प्रकार दक्षिण चरमान्त में समुद्घात कर के उत्तर चरमान्त में उपपात और एक, दो, तीन या चार समय की विग्रहगति कहनी चाहिये । पश्चिम चरमान्त के समान पूर्व चरमान्त में भी वो, तीन या चार समय की विग्रहगति जाननी चाहिये । पश्चिम चरमान्त में समघात कर के पश्चिम चरमान्त में उत्पन्न होने वाले पृथ्वीकायिक के लिए स्वस्थान के अनुसार यहां भी · हना चाहिये।
. उत्तरिल्ले उववजमाणाणं एगसमइओ विग्गहो णस्थि, सेसं तहेव । पुरच्छिमिल्ले जहा सट्टाणे, दाहिणिले एगसमइओ विग्गहो णत्थि, सेसं तं चेव । उत्तरिल्ले समोहयाणं उत्तरिल्ले चेव उववज्जमाणाणं जहेव सट्ठाणे । उत्तरिल्ले समोहयाणं पुरन्छिमिल्ले उववज. माणाणं एवं चेव । णवरं एगसमहओ विग्गहो गस्थि । उत्तरिल्ले समोहयाणं दाहिणिल्ले उववजमाणाणं जहा सट्टाणे, उत्तरिल्ले समोहयाणं पञ्चच्छिमिल्ले उवक्जमाणाणं एगसमइओ विग्गहो गस्थि, सेसं तहेव, जाव सुहुमवणस्सइकाइओ पजत्तओ सुहुमवणस्सहकाइ. एसु पजत्तएसु चेष ।
भावार्थ-उत्तर चरमान्त में उत्पन्न होने वाले जीव की एक समय की विग्रहगति नहीं होती। शेष पूर्ववत् । पूर्व चरमान्त स्वस्थान के समान ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org