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________________ ३७०८ भगवती सूत्र--श ३४ अवान्तर शतक १ उ. १ विग्रहगति मिल्ले चेव चरिमंते उववाइया तहेव पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहया पञ्चच्छिमिल्ले चरिमंते उववाएयध्वा सव्वे । भावार्थ-२४ प्रश्न-हे भगवन् ! जो अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव लोक के पूर्व चरमान्त में समुद्घात कर के लोक के पश्चिम चरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिकपने उत्पन्न हो, तो वह कितने समय की विग्रहगति से० ? २४ उत्तर-हे गौतम ! वह एक, दो, तीन या चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। प्रश्न-हे भगवन् ! क्या कारण है कि यावत् चार समय की विग्रहगति से ०? उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत् । जिस प्रकार पूर्व चरमान्त में समुद्घात कर के पूर्व चरमान्त में ही उपपात कहा, उसी प्रकार पूर्व चरमान्त में समुद्घात कर के पश्चिम चरमान्त में सभी का उपपात कहना चाहिये । २५ प्रश्न-अपज्जत्तसुहुमपुढविकाइए णं भंते ! लोगस्स पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए लोगस्स उत्तरिल्ले चरिमंते अपजत्नसुहुमपुढविकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भते० ? २५ उत्तर-एवं जहा पुररिछमिल्ले चरिमंते समोहओ दाहिपिल्ले चरिमंते उववाहओ तहा पुरच्छिमिल्ले समोहओ उत्तरिल्ले चरिमंते उववाएयव्यो। भावार्थ-२५ प्रश्न-हे भगवन् ! जो अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव लोक के पूर्व चरमान्त में समुद्घात कर के लोक के उत्तर चरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिकपने उत्पन्न हो, तो वह कितने समय की विग्रहगति से० ? २५ उत्तर-हे गौतम ! पूर्व चरमान्त में समुद्घात कर के दक्षिण चरमान्त में उपपात कहा, उसी प्रकार पूर्व चरमान्त में समुद्घात कर के उत्तर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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