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भगवती सूत्र--श ३४ अवान्तर शतक १ उ. १ विग्रहगति
मिल्ले चेव चरिमंते उववाइया तहेव पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहया पञ्चच्छिमिल्ले चरिमंते उववाएयध्वा सव्वे ।
भावार्थ-२४ प्रश्न-हे भगवन् ! जो अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव लोक के पूर्व चरमान्त में समुद्घात कर के लोक के पश्चिम चरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिकपने उत्पन्न हो, तो वह कितने समय की विग्रहगति से० ?
२४ उत्तर-हे गौतम ! वह एक, दो, तीन या चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है।
प्रश्न-हे भगवन् ! क्या कारण है कि यावत् चार समय की विग्रहगति से ०?
उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत् । जिस प्रकार पूर्व चरमान्त में समुद्घात कर के पूर्व चरमान्त में ही उपपात कहा, उसी प्रकार पूर्व चरमान्त में समुद्घात कर के पश्चिम चरमान्त में सभी का उपपात कहना चाहिये ।
२५ प्रश्न-अपज्जत्तसुहुमपुढविकाइए णं भंते ! लोगस्स पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए लोगस्स उत्तरिल्ले चरिमंते अपजत्नसुहुमपुढविकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भते० ?
२५ उत्तर-एवं जहा पुररिछमिल्ले चरिमंते समोहओ दाहिपिल्ले चरिमंते उववाहओ तहा पुरच्छिमिल्ले समोहओ उत्तरिल्ले चरिमंते उववाएयव्यो।
भावार्थ-२५ प्रश्न-हे भगवन् ! जो अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव लोक के पूर्व चरमान्त में समुद्घात कर के लोक के उत्तर चरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिकपने उत्पन्न हो, तो वह कितने समय की विग्रहगति से० ?
२५ उत्तर-हे गौतम ! पूर्व चरमान्त में समुद्घात कर के दक्षिण चरमान्त में उपपात कहा, उसी प्रकार पूर्व चरमान्त में समुद्घात कर के उत्तर
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