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________________ भगवती सूत्र-श. ३४ अवान्तर शतक १ उ. १ विग्रहगति ३७०७ २३ उत्तर-हे गौतम ! वह दो, तीन या चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। प्रश्न-हे भगवन् ! किस कारण से कहते हैं कि यावत् चार समय ? उत्तर-हे गौतम ! मैंने सात श्रेणियां कही है । यथा-ऋज्वायता यावत् अर्द्धचक्रवाल । यदि वह जीव एकतोवक्रा श्रेणी से उत्पन्न होता है, तो दो समय को विग्रहगति से उत्पन्न होता है। यदि उभयतोवक्रा श्रेणी से एक प्रतर में अनुश्रेणी (समश्रेणी) से उत्पन्न होने योग्य है, तो तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है और यदि विश्रेणी में उत्पन्न होने के योग्य है, तो चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। इस कारण हे गौतम ! पूर्वोक्त कथन है । इसी गमक से पूर्व चरमान्त में समुद्घात कर के दक्षिण चरमान्त में उपपात पावत् पर्याप्त सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीव का उपपात पर्याप्त सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीव में भी होता है। इन सभी में दो, तीन या चार समप की विग्रहगति कहनी चाहिये। २४ प्रश्न-अपजत्तसुहुमपुढविकाइए णं भंते ! लोगस्स पुरच्छि. मिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए लोगस्स पञ्चच्छिमिल्ले चरिमंते अपजत्तसुहुमपुढविकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते ! कइ. समइएणं विग्गहेणं उववजेजा ? | ____२४ उत्तर-गोयमा ! एगसमइएण वा दुसमइएण वा तिसमइएण वा चउसमइएण वा विग्गहेणं उववजेजा। प्रश्न-से केणटेणं० ? उत्तर-एवं । जहेब पुरिच्छिमिल्ले चरिमंते समोहया पुरच्छि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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