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________________ ३६९८ भगवती सूत्र-श. ३४ अवान्तर शतक १ उ. १ विग्रहगति उत्पन्न होता है। प्रश्न-हे भगवन् ! ऐसा कहने का क्या कारण है कि वह तीन या चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? उत्तर-हे गौतम ! जो अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक मोव अधोलोक क्षेत्र की प्रसनाड़ी के बाहर के क्षेत्र में मरण-समुद्घात कर के ऊर्ध्वलोक क्षेत्र को सनाड़ी के बाहर के क्षेत्र में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिकपने एक प्रतर में अनुश्रेणी (समश्रेणी) में उत्पन्न होने योग्य है, वह तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है और जो विश्रेणी में उत्पन्न होने योग्य है । वह चार समय को विग्रहगति से उत्पन्न होता है। इस कारण हे गौतम ! ऐसा कहा है कि 'तीन या चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है।' इस प्रकार जो पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिकपने यावत् पर्याप्त सूक्ष्म तेजस्कायिकपने उत्पन्न होता है, उसके विषय में भी जानना चाहिये। १५ प्रश्न-अपजत्तसुहुमपुढविकाइए णं भंते ! अहेलोग जाव समोहणित्ता जे भविए समयखेत्ते अपजत्तबायरतेउकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भवे ! कइसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा ? १५ उत्तर-गोयमा ! दुसमइएण वा तिसमइएण वा विग्गहेणं उववज्जेज्जा। प्रश्न-से केणटेणं० ? उत्तर-एवं खलु गोयमा ! मए सत्त सेढीओ पण्णत्ताओ, तं जहा१ उज्जुआयता, जाव ७ अद्धचक्कवाला । एगओवंकाए सेढीए उववजमाणे दुसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा, दुहओवंकाए सेढीए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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