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________________ भगवती सूत्र-श. ३१ उ. ४ कापोतलेशी नैरयिक की उत्पत्ति ३६५१ भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! कापोतलेश्या वाले क्षुद्रकृतयुग्म राशि प्रमाण नैरयिक कहां से आ कर उत्पन्न होते हैं. ? १ उत्तर-हे गौतम ! कृष्णलेश्या वाले क्षुद्रकतयुग्म नैयिक के समान उपपात रत्नप्रभा के अनुसार । शेष पूर्ववत् । २ प्रश्न-रयणप्पभापुढविकाउलेस्सनुड्डागकडजुम्मणेरड्या णं भंते ! कओ उववज्जति ? २ उत्तर-एवं चेव । एवं सकरप्पभाए वि, एवं वालुयप्पभाए वि। एवं चउसु वि जुम्मेसु । णवरं परिमाणं जाणियव्वं, परिमाणं जहा कण्हलेस्सउद्देसए, सेसं तं चेव । 8 'सेवं भंते ! सेवं भंते !' त्ति ® .. ॥ इकतीसइमे सए चउत्थो उद्देसो समत्तो ॥ भावार्थ-२ प्रश्न-हे भगवन् ! कापोतलेश्या वाले क्षुद्रकृतयुग्म राशि प्रमाण रत्नप्रभा पथ्वी के नैरयिक कहाँ से आ कर उत्पन्न होते हैं ? २ उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत् । इस प्रकार शर्कराप्रभा में और वालुकाप्रभा में चारों युग्म का निरूपण करना चाहिए । परिमाण कृष्णलेश्या उद्देशक के अनुसार। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है-- कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन--इस चौथे उद्देशक में कापोतलेश्या वाले नैरयिकों का कथन किया है। कापोतलेश्या पहली, दूसरी और तीसरी नरक में होती है। इसलिये एक सामान्य दण्डक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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