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________________ शतक ३१ उद्देशक ३ नील लेश्या वाले नैयिक की उत्पत्ति . १ प्रश्न-णीललेस्सग्बुड्डागकडजुम्मणेरइया णं भंते ! कओ उववनंति ? १ उत्तर-एवं जहेव कण्हलेस्सखुइडागकडजुम्मा । णवरं उववाओ जो वालुयप्पभाए, सेसं तं चेव । वालुयप्पभापुढविणीललेस्स. खुइडागकडजुम्मणेरइया एवं चेव, एवं पंकप्पभाए वि, एवं घूमप्पभाए वि। एवं चउसु वि जुम्मेसु । णवरं परिमाणं जाणियध्वं । परिमाणं जहा कण्हलेस्सउद्देसए । सेसं तहेव । E 'सेवं भंते ! सेवं भंते !' त्ति ॥ इकतीसइमे सए तईओ उद्देसो समत्तो ॥ भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! नीललेश्या वाले क्षुद्रकृतयुग्म प्रमाण नैरयिक कहां से आ कर उत्पन्न होते हैं. ? १ उत्तर-हे गौतम ! कृष्णलेश्या वाले क्षुद्रकृतयुग्म नरयिक के समान, किन्तु उपपात वालुकाप्रभा के समान है । शेष पूर्ववत् । इसी प्रकार वालुकाप्रभा पृथ्वी के नीललेल्या वाले क्षुवकृतयुग्म नरयिक और पङ्कप्रमा और धूमप्रभा के विषय में भी चारों युग्म का कयन करना चाहिये । परिमाण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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