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भगवती गूत्र - श. ३० उ. ४ - ११ समुच्चय क्रियावादी०
१ उत्तर - हे गौतम! औधिक उद्देशकानुसार परम्परोपपनक नैरयिक मी हैं और नरयिक से ले कर वैमानिक पर्यन्त समग्र उद्देशक भी उसी प्रकार, तीन दण्डक सहित जानना चाहिये ।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है'कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं ।
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विवेचन-जिन जीवों को उत्पन्न हुए एक समय से अधिक हो गया है, वे परंपरोपपनक' कहलाते हैं । इनके लिये औधिक उद्देशक का अतिदेश किया है ।
क्रियावादित्व आदि की प्ररूपणा करना, यह एक दण्डक है । आयु-बन्ध की प्ररूपणा का दूसरा दण्डक है और भव्या मव्यत्व की प्ररूपणा का तीसरा दण्डक है। इन तीन aussi सहित यहां कथन करना चाहिये ।
॥ तीसवें शतक का तीसरा उद्देशक सम्पूर्ण ||
शतक ३० उद्देशक ४ – १९
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समुच्चय क्रियावादी०
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१ - एवं एए कमेणं जच्चेव बंधिसए उद्देसगाणं परिवाडी सच्चैव इहं पि जाव अचरिमो उद्देसो । णवरं अनंतरा चत्तारि वि एकगमगा, परंपरा चचारि वि. एक्कगमएणं । एवं चरिमा बि अच
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