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भगवती सूत्र-श. ३० उ. १ समवसरण
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सलेस्सा । एवं णेरड्या वि भाणियव्वा, णवरं णायव्वं जं अस्थि । एवं असुरकुमारा वि जाव थणियकुमारा । पुढविक्काइया सब्वट्ठाणेसु 'वि मज्झिल्लेसु दोसु वि समोसरणेसु भवसिद्धिया वि, अभवसिद्धिया वि । एवं जाव वणस्मइकाइया । बेइंदिय-तेइंदिय चरिंदिया पवं. चेव । णवरं सम्मत्ते ओहिणाणे आभिणिबोहियणाणे सुयणाणे एएसु. चेव दोसु मज्झिमेसु समोमरणेसु भवसिद्धिया, णो अभवसिद्धिया सेसं तं चेव । पंचिंदियतिरिक्खजोणिया जहा परइया । णवरं णायव्वं जं अस्थि । मणुस्सा जहा ओहिया जीवा । वाणमंतर-जोइसिय-वेमा. णिया जहा असुरकुमारा। ____® 'सेवं भंते ! सेवं भंते !' ति ®
॥ तीसइमे सए पढमो उद्देसो समत्तो ॥ भावार्थ-३४ प्रश्न-हे भगवन् ! अलेशी क्रियावादी जीव, भवसिद्धिक हैं.?
३४ उत्तर-हे गौतम ! भवसिद्धिक है, अभवसिद्धिक नहीं। इस अभिलाप से कृष्णपाक्षिक तीनों समवसरण में (अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी) भजना (विकल्प) से भवसिद्धिक हैं। शुक्लपाक्षिक जीव, चारों समवसरण में भवसिद्धिक हैं, अमवसिद्धिक नहीं। सम्यगदष्टि जीव, अलेशी जीव के समान हैं। मिथ्यादृष्टि जीव, कृष्णपाक्षिक के तुल्य है । सम्यगमिथ्यादृष्टि अज्ञानवादी और विनयवादी, इन दोनों समवसरण में अलेशी जीव के वल्य भवसिद्धिक हैं। ज्ञानी यावत् केवलज्ञानी जीव भवसिद्धिक हैं, अभवसिद्धिक नहीं । अज्ञानी यावत् विभंगज्ञानी, जीव, कृष्णपाक्षिक जीव के तुल्य हैं। चारों संज्ञा वाले जीव का निरूपण सलेशी जीव के सदृश है । नोसंजोपयुक्त जीव का कपन सम्यग्दृष्टि जैसा है। सवेदी यावत् नपुंसकवेदी जीव, सलेशी जैसे है और
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