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भगवती मूत्र-श. ३० उ. १ समवसरण
ठाणेसु वि णो णेग्इयाउयं पकरेंति, तिरिक्खजोणियाउयं पि पकरेंति, मणुस्साउयं पि पकरेंति, णो देवाउयं पकरेंति । णवरं सम्मामिच्छत्ते उवरिल्लेहिं दोहि वि समोसरणेहिं ण किंचि वि पकरेंति जहेव जीवपए । एवं जाव थणियकुमारा जहेव गोरइया ।
__भावार्थ-२५ प्रश्न-हे भगवन् ! सलेशी क्रियावादी नरयिक का आय बांधते हैं ?
२५ उत्तर-हे गौतम ! जो नैरयिक क्रियावादी हैं, वे सभी एकमात्र मनुष्य का ही आयु बांधते हैं और जो अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी हैं, वे सभी स्थानों में तियंच और मनुष्य का ही आयु बांधते हैं, नैरयिक और देव का आयु नहीं बांधते, परन्तु सम्यमिथ्यादष्टि, अज्ञानवादी और विनयवादी, इन दो समवसरण में, जीव-पद के अनुसार किसी भी आयु का बन्ध नहीं करते । इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार पर्यन्त ।
२६ प्रश्न-अकिरियावाई णं भंते ! पुढविक्काइया-पुच्छा ।।
२६ उत्तर-गोयमा! णो णेरइयाउयं पकरेंति, तिरिपखजोणियाउयं० मणुस्माउयं० णो देवाउयं पकरेंति । एवं अण्णाणियवाई वि । . भावार्थ-२६ प्रश्न-हे भगवन् ! अक्रियावादी पृथ्वीकायिक जीव, नैरयिक का आयु बांधते हैं. ?
२६ उत्तर-हे गौतम ! वे नरयिक और देव का आय नहीं बांधते, किन्तु तियंच और मनुष्य का आय बांधते हैं । अज्ञानवादी भी इसी प्रकार ।
.. २७ प्रश्न-सलेस्सा णं भंते !० ?
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