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भगवती सूत्र-३२. २९ उ. १ कर्म-वेदन का प्रारंभ और गमाप्ति
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कठिन शब्दार्थ--समायं --एक माथ, पट्टधि सु-- प्रारम्भ किया था, णिविसु-- समाप्त किया था ।
____ भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! ? जीव, पाप-कर्म का वेदन एक साथ प्रारम्भ करते हैं और एक साथ ही समाप्त करते हैं ? २ या एक साथ प्रारम्भ करते हैं और भिन्न समय में समाप्त करते हैं ? ३ या भिन्न समय में प्रारम्भ करते हैं और एक साथ समाप्त करते हैं ? ४ या भिन्न समय में प्रारम्भ करते .. हैं और भिन्न समय में समाप्त करते हैं ?
१ उत्तर-हे गौतम ! कितने ही जीव एक साथ प्रारम्भ करते हैं और एक साथ समाप्त करते हैं यावत् कितने ही जीव भिन्न समय में प्रारम्भ करते हैं और भिन्न समय में समाप्त करते हैं।
२ प्रश्न-से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-'अत्थेगइया समायं पट्ठः विसु समायं णिविसु'-तं चे ?
२ उत्तर-गोयमा ! जीवा चउब्विहा पण्णत्ता, तं जहा-१ अस्थे. गइया समाउया समोववण्णगा २ अत्थेगइया समाउया विसमोववण्णगा ३ अत्यंगइया विसमाउया समोववण्णगा ४ अथेगइया विसमाउया विसमोववण्णगा। १ तत्थ णं जे ते समाउया समोववण्णगा ते णं पावं कम्मं समायं पट्टविंसु ममायं णिविंसु । २ तत्थ णं जे ते समाउया विसमोववण्णगा ते णं पावं कम्मं समायं पट्टविंसु विसमायं णिविंसु । ३ तत्थ णं जे ते विसमाउया समोचवण्णगा ते णं पावं कम्मं विममायं पविंमु समायं णिविंसु । ४ तत्थ णं जे ते विसमाउया विममोववण्णगा ते णं पावं कम्मं विसमायं पट्टविंसु
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