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भगवती सूत्र - २६ उ ११ अचरम बन्धक
२ किसी ने बांधा था, बांधता है और नहीं बांधेगा । ३ किसी ने बांधा था, नहीं बांधता है और बांधेगा ।
३ प्रश्न-सलेस्से णं भंते ! अचरिमे मणूसे पावं कम्मं किं बंधी ० ? ३ उत्तर - एवं चैव तिष्ण भंगा चरमविणा भाणियत्वा एवं जब पढमुद्दे से । वरं जेसु तत्थ वीससु चत्तारि भंगा तेसु इह आदिल्ला तिणि मंगा भाणियव्वा चरिमभंगवज्जा । अलेस्से केवलणाणी य अजोगीय एए तिष्णिवि ण पुच्छिजंति, सेसं तहेव वाणमंतर जोड़ सिय-वेमाणिए जहा रहए ।
भावार्थ-३ प्रश्न- हे भगवन् ! सलेशी अचरम मनुष्य ने पाप कर्म बांधा
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था० ?
३ उत्तर - हे गौतम! पूर्वोक्त कथनानुसार चौथा भंग छोड़ कर शेष तीन मंग कहना चाहिये । शेष प्रथम उद्देशक के समान किन्तु वहां जिन बीस पदों में चार भंग कहे हैं, उन पदों में यहाँ अन्तिम भंग के अतिरिक्त प्रथम के तीन भंग कहना चाहिये। यहां अलेशी, केवलज्ञानी और अयोगी मनुष्य के विषय में प्रश्न नहीं करना चाहिये । वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक देवों का कथन नैरयिक के समान जानना चाहिये ।
४ प्रश्न - अत्ररिमे णं भंते ! रइए णाणावर णिज्जं कम्मं किं बंधी - पुच्छा ।
४ उत्तर - गोयमा ! एवं जहेव पावं० | णवरं मणुस्मेसु सकसायी लोभकसायी पदम बिड़या भंगा, सेसा अट्ठारस चरमविहणा, सेसं तहेव जाव वैमाणियाणं । दरिसणावरणिजं पि एवं चैव णिरव
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