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________________ ३५६८ भगवती सूत्र - स. . २६. क्र. १: नेरयिक के पापु-बन्ध अलेशी होते हैं । वे आयु का बन्ध नहीं एकमात्र चौथा भंग ही पाया जाता है । कृष्णपाक्षिक जोव में पहला और तीसरा भंग पाया जाता है। अभव्य की अपेक्षा शैलेशी अवस्था प्राप्त जीत्र तथा सिद्ध भगवान् करते और आगे भी नहीं करेंगे । इसलिए उनमें 15 भंग होता है। क्योंकि वह वर्तमान काल में आयु बांधेगा। दूसरा और चौथा भंग कृष्णपाक्षिक में पहला और अबन्धकाल की अपेक्षा तीसरा नहीं बांधता है, किन्तु भविष्यत्काल में नहीं होता, क्योंकि उसमें आयु-बन्ध का सर्वथा अभाव नहीं होता । शुक्लपाक्षिक और सम्यग्दृष्टि में चार भंग होते हैं, क्योंकि उसने पहले आयु बांधा था, बन्धकाल में बांधता है और अवन्धकाल के बाद फिर बांधेगा। इस अपेक्षा से पहला भंग होता है । चरमशरीरी की अपेक्षा दूसरा, उपशम अवस्था की अपेक्षा तीसरा और क्षपक अवस्था की अपेक्षा चौथा भंग होता है। मिध्यादृष्टि में चार भंग होते हैं | अभव्य की अपेक्षा पहला भंग, चरमशरीर की प्राप्ति होने पर नहीं बांधेगा, अतः दूसरा भंग, अवन्धकाल की अपेक्षा तीसरा भंग है और चौथा भंग चरमशरीरी की अपेक्षा है । सम्यग्मिथ्यादृष्टि ( मिश्र दृष्टि ) जीव सम्यग्मिथ्यादृष्टि अवस्था में आयु नहीं बांधता और कोई जीव चरमशरीरी हो जाने पर बांधेगा भी नहीं, इसलिए इसमें तीसरा और चौथा भंग पाया. जाता है । ज्ञानी जीवों में चार भंग होते हैं, जिनकी घटना पूर्ववत् समझना चाहिये । मनः पर्यवज्ञानी में दूसरे भंग के अतिरिक्त तीन भंग पाये जाते हैं। उसने पहले आयु बांधा था, वर्त मान में देवा बांधता है और आगे मनुष्यायु बांधेगा, इस अपेक्षा से प्रथम भंग होता है । दूसरा भंग सम्भावित नहीं है, क्योंकि देव भव में अवश्य मनुष्य आयु बांधेगा, उपशम अवस्था : की अपेक्षा तीसरा और क्षपक अवस्था की अपेक्षा चौथा भंग है । केवलज्ञानी न तो आयु बांधते हैं और न बांधेगे । इसलिये एक चौथा भंग ही पाया जाता है । नोसंज्ञोपयुक्त जीव में भी मनः पर्यवज्ञानी के समान तीन भंग घटित करने चाहिये । अवेदक और अकषायी जीव में उपशम और क्षपक, अवस्था की अपेक्षा तीसरा और चौथा भंग पाया जाता हैं । Jain Education International • अज्ञान -- मतिअज्ञानादि तीन, संज्ञोपयुक्त आहारादि चार संज्ञोपयुक्त, सवेदक-स्त्रीवेद आदि तीन वेद, सकषाय-- क्रोधादि चार कषाय, सयोगी--मनोयोगी आदि तथा साकारोपयुक्त और अनाकारोपयुक्त इन सभी में चार-चार भंग पाये जाते हैं । नैरयिक जीवों में चार भंग कहे हैं, क्योंकि नैरयिक जीव ने आयु बांधा था. बंध काल में बांधता है और भवान्तर में बांधेगा, इस प्रकार पहला भंग होता है। जो मोक्ष For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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