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भगवती सूत्र-श. २६ उ. १ ने यिक के पाप-बन्ध
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सम्भव है, वहाँ तीसरे भंग के अतिरिक्त तीन भंग पाये जाते हैं और जहाँ अयोगा अवस्था का सम्भव नहीं है, वहाँ पहला और दूसरा भंग ही पाया जाता है।
१९ प्रश्न-जीवे णं भंते ! मोहणिज्ज कम्मं किं बंधी बंधइ० ?
१९ उत्तर-जहेव पावं कम्मं तहेव मोहणिज्जपि गिरवसेसं जाव वेमाणिए।
भावार्थ-१९ प्रश्न-हे भगवन् ! जीव ने मोहनीय कर्म बांधा था ?
१९ उत्तर-हे गौतम ! पाप कर्म के समान मोहनीय कर्म भी है । इस प्रकार यावत् वैमानिक तक।.
२० प्रश्न-जीवे णं भंते ! आउयं कम्मं किं बंधी बंधइ-पुच्छा।
२० उत्तर-गोयमा ! अत्थेगइए बंधी-चउभंगो। सलेस्से जाव सुकलेस्से चत्तारि भंगा, अलेस्से चरिमो भंगो। • भावार्थ-२० प्रश्न-हे भगवन् ! जीव ने आयु-कर्म बांधा था. ?
२० उत्तर-हे गौतम ! किसी जीव ने बांधा था, इत्यादि चारों भंग होते हैं । सलेशी यावत् शुक्ललेशी जीवों में भी चारों भंग होते हैं। अलेशी जीवों में एकमात्र अन्तिम भंग होता है।
५. २१ प्रश्न-कण्हपक्खिए गं-पुच्छा। .. २१ उत्तर-गोयमा ! अत्थेगहए बंधी बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगइए बंधी ण बंधइ बंधिस्सइ । सुक्कपक्खिए सम्मदिट्ठि मिच्छादिट्ठि चत्तारि भंगा।
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