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भगवती सूत्र-श. २५ उ. ८ आत्म-ऋद्धि से उत्पत्ति
२ उत्तर-हे गौतम ! जिस प्रकार कोई पुरुष तरुण और बलवान हो इत्यादि चौदहवें शतक के पहले उद्देशकानुसार यावत् वे तीन समय की विग्रह गति से उत्पन्न होते हैं। उन जीवों की वैसी शीघ्र गति और शीघ्र गति का विषय होता है।
३ प्रश्न-ते णं भंते ! जीवा कहं परभवियाउयं पकरेंति ? .. ३ उत्तर-गोयमा ! अज्झवसाणजोगणिव्वत्तिएणं करणोवाएणं एवं खलु ते जीवा परभवियाउयं पकरेंति ।
भावार्थ-३ प्रश्न-हे भगवन् ! वे जीव परभव की आय किस प्रकार बांधते हैं ? - ३ उत्तर-हे गौतम ! वे जीव अपने अध्यवसाय रूप और मन आदि के व्यापार से करणोपाय (कर्मबन्ध के हेतु) द्वारा परभव को आयु बांधते हैं।
४ प्रश्र-तेसि णं भंते ! जीवाणं कहं गई षवत्तइ ?
४ उत्तर-गोयमा ! आउपखएणं, भवक्खएणं, ठिइक्खएणं, एवं खलु तेसिं जीवाणं गई पवत्तड़ ।
भावार्थ-४ प्रश्न-हे भगवन् ! उन जीवों की गति क्यों होती है ?
४ उत्तर-हे गौतम ! उन जीवों को आयु, भव और स्थिति का क्षय हो जाने से गति होती है।
आत्म-ऋद्धि से उत्पत्ति
__५ प्रश्न ते णं भंते ! जीवा किं आयड्ढीए उववज्जति, परिड्ढीए उववज्जति ?
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