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भगती सूत्र-दा. २५ उ. ५ सौद्र ध्यान
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(१) हिमानबन्धी--प्राणियों को चाबक आदि से मारना, कील आदि से नाक, कान आदि बींधना, रस्सी, जंजीर आदि से बांधनी, अग्नि में डालना, डाम लगाना, तलवार आदि से प्राण-वध करना अथवा उपर्युक्त कार्य न करते हुए भी क्रोध के वश हो कर निर्दयतापूर्वक इन हिसाकारी कार्यों का निरन्तर चिन्तन करते रहना 'हिंमानुबन्धी रौद्र ध्यान' है।
(२) मृषानुबन्धी--दूसरों को ठगने की प्रवृत्ति करने वाले तथा छिप कर पापा चरण करने वाले को अनिष्ट सूचक वचन, असभ्य वचन, असत अर्थ का प्रकाशन, मत अर्थ का अपलाप एवं एक के स्थान पर दूसरे पदार्थ आदि का कथन रूप असत्य वचन एवं प्राणियों का उपघात करने वाले वचन कहना या कहने का निरन्तर चिन्तन करना-'मृपानुबन्धी रोद्र ध्यान' है। ___ (३)स्तेयानुबन्धी--(चौर्यानुबन्धो) तीव्र क्रोधं ओर लोभ से व्याकुल चित्त वाले पुरुष की प्राणियों के उपघातक, पर-द्रव्य हरण आदि कार्यों में निरन्तर चित्तवृत्ति का होना 'स्तेयानुबन्धी रौद्र ध्यान' है।
(४) संरक्षणानुबन्धी-शब्दादि पाँच विषयों के माधनभूत, धन की रक्षा करने की चिन्ता करना और 'न मालूम दूसरा क्या करेगा'-इस आशंका से दूसरों का उपघात करने की कषाय युक्त चित्तवृत्ति रखना 'मरक्षणानुबन्धी रोद्र ध्यान' हैं ।
.. हिंसा, झूठ, चोरी और धन-संरक्षण स्वयं करना, दूसरों से करवाना और करते हुए की अनुमोदना करना तथा इन तीनों के निमित्तादि का चिन्तन करना 'रौद्र ध्यान' है। राग-द्वेष से व्याकुल जीव के यह चारों प्रकार का रौद्र ध्यान होता है । यह ध्यान संसार को बढ़ाने वाला और प्रायः नरक गति में ले जाने वाला होता है । .. .
रौद्र ध्यान के चार लक्षण हैं । यथा--
१ ओसन्न दोष-रौद्रध्यानी हिंसा से निवृत्त न होने से बहुलतापूर्वक हिंसा आदि में से किसी एक में प्रवृत्ति करता है। . २ बहुल दोष-रौद्रध्यानी हिंसादि सभी दोषों में प्रवृत्ति करता है।
३ अज्ञान दोष-अज्ञान से, कुशास्त्र के संस्कार से नरकादि के कारणभूत अधर्म स्वरूप हिंसादि में धर्म-द्धि से उन्नति के लिये प्रवृत्ति करना 'अज्ञान दोष' है।
अथवा नाना दोष-हिसादि के विविध उपायों में अनेक बार प्रवृत्ति करना 'नाना दोष' है।
४ आमरणान्त दोष-मरणपर्यन्त क्रूर हिंसादि कार्यों में अनुताप (पश्चात्ताप) न
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