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भगवती सूत्र-श २५ उ. ७ विनय तप
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१४० प्रश्न-से किं तं अप्पसत्थकायविणए ?
१४० उत्तर-अप्पसत्थकायविणए सत्तविहे पण्णत्ते, तं जहा१ अणाउत्तं गमणं जाव ७ अणाउत्तं मविदियजोगजुजणया । सेत्तं अप्पसत्थकायविणए । सेत्तं कायविणए ।
भावार्थ-१४० प्रश्न-हे भगवन् ! अप्रशस्त काय-विनय कितने प्रकार का है ?
१४० उत्तर-हे गौतम! अप्रशस्त काय-विनय सात प्रकार का कहा है। यथा-अनायुक्त गमन यावत् अनायुक्त सर्वेन्द्रिय-योग-युजनता (असावधानी से सभी इन्द्रियों और योगों की प्रवृति करना) । यह अप्रशस्त काय-विनय हुआ। यह काय-विनय हुआ।
१४१ प्रश्न-से किं तं लोगोवयारविणए ? । - १४१ उत्तर-लोगोवयारविणए सत्तविहे पण्णत्ते, तं जहा१ अब्भासवत्तियं २ परच्छंदाणुवत्तियं ३ कजहेडं ४ कयपडिकइया ५ अतगवेसणया ६ देसकालण्णया ७ सव्वत्थेसु अप्पडिलोमया । सेत्तं लोगोवयारविणए । सेत्तं विणए । .. भावार्थ-१४१ प्रश्न-हे भगवन ! लोकोपचार-विनय के कितने भेद हैं ?
१४१ उत्तर-हे पौतम! लोकोपचार-विनय के सात भेद कहे हैं । यथाअभ्यासवृत्तिता (गुरु आदि के पास रहना और अभ्यास में प्रेम रखना), परच्छन्दानुवत्तिता (गुरु आदि बड़ों की इच्छानुसार कार्य करना), कार्य हेतु (गुरु आदि द्वारा किये हुए ज्ञान-दानादि कार्य के लिये उन्हें विशेष मानना, उन्हें आहारादि ला कर देना), कृतप्रतिक्रिया (अपने पर किये हुए उपकार का बदला चुकाना अथवा 'आहारादि से गुरु की शुश्रूषा करने से वे प्रसन्न
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