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________________ भगवनी मूत्र-श. २५ उ. विनय ता ३५१७ अनाशातना, क्रिया की अनाशातना, साम्भोगिक (समान धर्म वाले) की अनाशातना, आभिनिबोधिक ज्ञान की अनाशातना यावत् केवलज्ञान की अनाशातना। इन पन्द्रह की १ भक्ति २ बहुमान करना तथा इन पन्द्रह के ३ गुण कीर्तन करना, इस प्रकार अनाशातना विनय के ४५ भेद होते हैं। यह अनाशातना विनय हुआ भौर इसके साथ ही दर्शन-विनय पूर्ण हुआ। १३१ प्रश्न-से किं तं चरित्तविणए ? १३१ उत्तर-चरित्तविणए पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-१ सामाइयचरित्तविणए जाव ५ अहक्खायचरित्तविणए । से तं चरित्तविणए । भावार्थ-१३१ प्रश्न-हे भगवन् ! चारित्र-विनय कितने प्रकार का है ? १३१ उत्तर-हे गौतम ! चारित्र-विनय पांच प्रकार का कहा है। यथासामायिक चारित्र-विनय यावत् यथाख्यात-चारित्र-विनय । यह चारित्र-विनय हुआ। ... १३२ प्रश्न-से किं तं मणविणए ? १३२ उत्तर-मणविणए दुविहे पण्णत्ते, त जहा-पसत्थमणविणए, अप्पसत्थमणविणए य। भावार्थ-१३२ प्रश्न-हे भगवन् ! मन-विनय कितने प्रकार का है ? १३२ उत्तर-हे गौतम ! मन-विनय दो प्रकार का है। यथा-प्रशस्त मन-विनय और अप्रशस्त मन-विनय । १३३ प्रश्न-से किं तं पसत्थमणविणए ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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