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________________ भगवती मूत्र-श. २९ उ. ७ समाचारी के भेद इच्छा मिच्छा तहक्कारे आवस्मिया य णिमीहिया । आपुच्छणा य पडिपुच्छा छंदणा य णिमंतणा। उवमंपया य काले सामायारी भवे दसहा । १०१ भावार्थ-समाचारी यस प्रकार की कही है । यथा-१ इच्छाकार २ मिथ्याकार ३ तथाकार ४ आवश्यको ५ नषेधिको ६ आपच्छना ७ प्रतिपृच्छना ८ छन्दना ९ निमन्त्रणा और १० उपसम्पदा । विवेचन-साधु का विधिवत् आचरण अथवा मर्यादित भला आचरण 'समाचारी' कहलाता है । इसके दस भेद हैं। यथा १ इच्छाकार-'यदि आपकी इच्छा हो, तो मैं अपना अमुक कार्य करूं' अथवा .'आपकी आज्ञा हो, तो मैं आपका यह कार्य करूँ'- इस प्रकार पूछना 'इच्छाकार' कहलाता है। एक साधु, दूसरे साधु से किसी कार्य के लिये प्रार्थना करे अथवा दूसरा साधु स्वयं वह कायं करे, तो उसमें 'इन्छाकार' कहना आवश्यक है । इससे किसी भी कार्य में किमी की विवशता नहीं रहती। .. २ मिथ्याकार-संयम का पालन करते हुए कोई विपरीत आचरण हो गया हो, तो उस पाप के लिये पश्चात्ताप करता हुआ माधु स्वयं कहता है कि 'मिच्छामिदुक्कडं' अर्थात् 'मेरा पाप निष्फल हो ।' इसे 'मिथ्याकार' समाचारी कहते हैं। . .. ३ तथाकार--सूत्रादि आगम के विषय में गुरु मे कुछ पूछने पर जब गुरु महाराज उत्तर दें, तब तथा जब वे व्याख्यान दें तब-तहत्ति' (आप कहते हैं, वह ठीक है) कहना 'तथाकार' समाचारी है । ४ आवश्यकी-आवश्यक कार्य के लिये उपाश्रय से बाहर निकलते समय साधु को-'आवस्सिया, आवम्मिया' कहना चाहिये अर्थात् 'मैं आवश्यक कार्य के लिये जाता हूँ'-ऐसा कहना 'आवश्यकी' समाचारी है। ५ नषेधिकी-बाहर से लौट कर उपाश्रय में प्रवेश करते समय 'निसीहिया, निसीहिया' कहना अर्थात् जिस कार्य के लिये में बाहर गया था, उस कार्य से निवन हो कर आ गया हूँ।' इस प्रकार उस गत कार्य का निषेध करना 'नषेधिकी' समाचारी है। ६ आपृच्छना-किसी कार्य में प्रवृत्ति करने के पूर्व गुरु महाराज से पूछना कि "हे भगवन् ! मैं वह कार्य करूं ?" यह 'आपृच्छना' समाचारी है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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