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________________ निवेदन हमारी श्वेताम्बर परम्परा के मान्य बत्तीस आगम साहित्य में भगवती सूत्र ( व्याख्या प्रज्ञप्ति सूत्र) का स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण है। जैन दर्शन को विशेष रूप से समझने एवं तत्त्व ज्ञान की दृष्टि से यह सूत्र जितना गंभीर है, उतना ही सामग्री की विशालता लिए हुए है। वर्तमान में उपलब्ध सभी सूत्रों में इसकी सामग्री विशाल एवं सर्वाधिक है। नंदी सूत्र के निम्न पाठ के अनुसार यह सूत्रराज ३६००० प्रश्नोत्तरों का श्रुतभंडार है । "छत्तीसं वागरणसहस्साइं दो लक्खा अट्ठी सीइं पयसहस्साइं पयग्गेणं संखिज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अनंता थावरा' 99 अर्थ - ३६००० प्रश्नोत्तर है, २ लाख ८८ सहस्र पद है । संख्येय अक्षर है । ( वर्तमान में १५७५ श्लोक परिमाण अक्षर है) अनन्त गम है, अनन्त पर्यव है, परित्त त्रस है, अनन्त स्थावर है। सभी ३६००० प्रश्न भगवान् के प्रथम गणधर गौतम स्वामी द्वारा पूछे गए हैं एवं प्रभु महावीर के मुखारविन्द से उनके उत्तर फरमाये गए हैं। यह सूत्रराज द्रव्यानुयोग, चरणानुयोग गणितानुयोग एवं धर्मकथानुयोग चारों अनुयोगों के संमिश्रण की सामग्री संजोये हुए हैं। जैन समाज की अनेक संस्थाओं द्वारा भगवती सूत्र का अनुवाद प्रकाशित हो चुका है। किन्तु संघ द्वारा प्रकाशित यह भगवती सूत्र क्या-क्या विशेषता लिए हुए है, इसका विषद विवेचन आदरणीय डोशी सा. द्वारा लिखित प्रस्तावना में दिया गया है। उसकी पुनरावृत्ति करना उचित नहीं है। सुज्ञ पाठक वर्ग को इस सूत्रराज का स्वाध्याय आरम्भ करने से पूर्व उस प्रस्तावना को अवश्य पढ़ लेना चाहिए, ताकि सम्बन्धित भाग की विषय सामग्री के साथ संघ के इस प्रकाशन की विशेषताओं की भी जानकारी हो जाय । संघ की आगम बत्तीसी प्रकाशन में आदरणीय श्री जशवंतभाई शाह, मुम्बई निवासी का मुख्य सहयोग रहा है। आप एवं आपकी धर्म सहायिका श्रीमती मंगलाबेन शाह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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