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________________ भगवती मूत्र-श २५ उ ७ अन्तर काल द्वार ८३ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहर्त इत्यादि पुलाक के समान । इसी प्रकार यावत् यथाख्यात संयत पर्यन्त । ८४ प्रश्न-सामाइयसंजयाणं भंते !-पुन्छा । ८४ उत्तर-गोयमा ! णत्थि अंतरं । भावार्थ-८४ प्रश्न-हे भगवन् ! सामायिक संयतों का अंतर कितने काल का ? __८४ उत्तर-हे गौतम ! अन्तर नहीं होता। . . ८५ प्रश्न-छेओवट्ठावणिय-पुच्छा । ८५ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं तेवहिँ वाससहस्साई, उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमकोडाकोडीओ। ___ भावार्थ-८५ प्रश्न-हे भगवन् ! छेदोपस्थापनीय संयतों का अन्तर०? ८५ उत्सर-हे गौतम ! जघन्य तिरसठ हजार वर्ष और उत्कृष्ट (कुछ को अठारह कोड़ाकोड़ी सागरोपम । ... ८६ प्रश्न-परिहारविसुद्धियस्स-पुच्छा। ८६ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं चउरासीई वाससहस्साई, उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमकोडाकोडीओ। सुहुमसंपरायाणं जहा णियंठाणं । अहा वायाणं जहा सामाइयसंजयाणं (३०)। भावार्थ-८६ प्रश्न-हे भगवन् ! परिहारविशुद्धिक संयतों का अन्तर०? ८६ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य चौरासी हजार वर्ष उत्कृष्ट (कुछ कम) अठारह कोडाकोड़ी सागरोपम का है । सूक्ष्म सम्पराय संयतों का अन्तर निग्रंथों के समान और यथाख्यात संयतों का सामायिक संयतों के समान हैं (३०)। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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