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भगवती सूत्र - श. २५ उ. ७ संयतों का स्वरूप
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भावार्थ - ६ प्रश्न - हे भगवन् ! यथाख्यात संयत कितने प्रकार के है ? ६ उत्तर - हे गौतम ! दो प्रकार के । यथा छद्मस्थ और केवली ।
संयतों का स्वरूप
सामाइयंमि उ कप चाउज्जामं अणुत्तरं धम्मं । तिविहेणं फासयंतो सामाइयसंजओ स खलु ॥ १ ॥ छत्तू उ परियागं पोराणं जो ठवेड़ अप्पाणं । धम्मंमि पंचनामे छेओट्टावणो स खलु ॥ २ ॥ परिहरइ जो विशुद्धं तु पंचजामं अणुत्तरं धम्मं । तिविणं फासयंतो परिहारियसंजओ स खलु || ३ ॥ लोभाणू वेययंतो जो खलु उवसामओ व खवओ वा । सो सुहुमसंपराओ अहखाया ऊणओ किंचि ॥ ४ ॥ उवसंते खीर्णमि व जो खलु कम्मंमि मोहणिजंमि ।
उमरथो व जिणो वा अहवाओ संजओ स खलु ॥५॥ (१)
भावार्थ-गाथाओं का अर्थ- सामायिक चारित्र को स्वीकार करने के पश्चात् चार महाव्रत रूप अनुत्तर (प्रधान) धर्म को जो मन, वचन और काया से त्रिविध (तीन करण से ) पालन करता है, वह 'सामायिक संयत' कहलाता है ॥ १ ॥
पूर्व पर्याय का छेदन कर के जो अपनी आत्मा को पाँच महाव्रत रूप धर्म में स्थापित करता है, वह 'छेदोपस्थापनीय संयत' कहलाता है ||२|| जो पाँच महाव्रत रूप अनुतर धर्म को मन, वचन और काया से,
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