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भगवती सूत्र-श. २५ उ. ६ काल द्वार
बकुशपन की प्राप्ति होने पर तुरन्त ही मरण संभव होने से जघन्य एक समय तक बकुशपन रहता है । यदि पूर्वकोटि वर्ष की आयु वाला, सातिरेक आठ वर्ष की उम्र में संयम स्वीकार करें, तो उसकी अपेक्षा उत्कृष्ट काल देशोनपूर्वकोटि वर्ष होता है ।
निर्ग्रन्थ का जघन्य काल एक समय है, क्योंकि उपशान्तमोह-गुणस्थानवर्ती निग्रन्थ प्रथम समय में भी मरण को प्राप्त हो सकते हैं । निर्ग्रन्थ का उत्कृष्ट काल अन्तमहूर्त है, क्योंकि निर्ग्रन्थपन इतने काल तक ही रहता है । स्नातक का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है, क्योंकि आयु के अन्तिम अन्तर्मुहूर्त में केवलज्ञान उत्पन्न होने पर जघन्य अन्तर्मुहूर्त के बाद वे मोक्ष जा सकते हैं। उत्कृष्ट काल तो देशोनपूर्वकोटि है, जिसका उल्लेख पहले कर दिया हैं।
१४० प्रश्न-पुलाया णं भंते ! कालओ केवचिरं होति ?
१४० उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समय, उपकोसेणं अंतोमुहत्तं ।
भावार्थ-१४० प्रश्न-हे भगवन् ! पुलाक (बहुत) कितने काल तक रहते हैं ? १४० उत्तर-हे गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त ।
१४१ प्रश्न-बउसा णं-पुच्छा।
१४१ उत्तर-गोयमा ! सव्वद्धं एवं जाव कसायकुसीला । णियंठा जहा पुलाया, सिणाया जहा बउसा २९ । ..
. भावार्थ-१४१ प्रश्न-हे भगवन् ! बकुश (बहुत) कितने काल तक रहते हैं ?
१४१ उत्तर-हे गौतम ! सर्वाद्धा (सर्व काल) रहते हैं। इसी प्रकार यावत कषाय-कुशील पर्यन्त । निग्रंथ पुलाक के समान और स्नातक वकुश के समान सदाकाल रहते हैं।
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