SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 269
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४२० भगवती सूत्र-श. २५ उ. ६ भव द्वार भावार्थ-१२४ प्रश्न-हे भगवन् ! स्नातक, आहारक होते हैं या अनाहारक ? १२४ उत्तर-हे गौतम ! आहारक भी होते हैं और अनाहारक भी। विवेचन-पुलाक से ले कर निग्रंथ तक मुनियों के विग्रहगत्यादि रूप अनाहारकपने के कारण का अभाव होने से आहारकपना ही होता है। स्नातक केवली-समुद्घात के तीसरे, चौथे और पांचवें समय में तथा अयोगी अवस्था में अनाहारक होते हैं । इसके अतिरिक्त शेष समय में आहारक होते हैं । भव द्वार १२५ प्रश्न-पुलाए णं भंते ! कह भवग्गहणाई होज्जा ? १२५ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं एपकं, उक्कोसेणं तिण्णि । भावार्थ-१२५ प्रश्न-हे भगवन् ! पुलाक, कितने भव ग्रहण करते हैं अर्थात् कितने भवों में पुलाकपन आता है ? १२५ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य एक और उत्कृष्ट तीन भव ग्रहण करते हैं अर्थात् तीन भवों में पुलाकपना प्राप्त हो सकता है। . १२६ प्रश्न-बउसे-पुच्छा। १२६ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं एकं, उक्कोसेणं अट्ठ । एवं पडिसेवणाकुसीले वि, एवं कसायकुसीले वि । णियंठे जहा पुलाए । भावार्थ-१२६ प्रश्न-हे भगवन् ! बकुश कितने भव प्रहण करते हैं ? १२६ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य एक और उत्कृष्ट आठ भव ग्रहण करते हैं अर्थात् आठ भवों में बकुशत्व आ सकता है। इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील और कषाय-कुशील भी। निग्रंथ का कथन पुलाक के समान है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy