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________________ भगवती सूत्र - श. २५ उ. ६ कर्म उदीरणा द्वार उदीरता है । आयुष्य को छोड़ कर शेष सात कर्म प्रकृतियों को उदीरता है । सम्पूर्ण आठ कर्म - प्रकृतियों को उदीरता है । आयुष्य और वेदनीय को छोड़ कर छह कर्म प्रकृतियों को उदीरता है और आयुष्य, वेदनीय और मोहनीय को छोड़ कर पाँच कर्म प्रकृतियों को उदीरता है । ३४१४ ११३ प्रश्न - नियंठे - पुच्छा | 1 ११३ उत्तर - गोयमा ! पंचविहउदीरए वा, दुविहउदीरए वा । पंच उदीरेमाणे आउय- वेय णिज्ज - मोहणिज्जवज्जाओ पंच कम्मप्पगडीओ उदीरेह, दो उदीरेमाणे णामं च गोयं च उदीरेह । भावार्थ - ११३ प्रश्न - हे भगवन् ! निग्रंथ, कर्म की कितनी प्रकृतियों को उदीरता है ? १९१३ उत्तर - हे गौतम! पाँच या दो कर्म-प्रकृतियों को उदीरता है । जब पांच की उदीरणा करता है, तो आयुष्य, वेदनीय और मोहनीय कर्म को छोड़ कर उदीरणा करता है और दो को उदीरता हुआ नाम और गोत्र- इन वो कर्म-प्रकृतियों को उदीरता है । ११४ प्रश्न - सिणाए- पुच्छा | ११४ उत्तर - गोयमा ! दुविहउदीरए वा अणुदीरए वा । दो उदीरेमाणे णामं च गोयं च उदीरेह २३ । भावार्थ - ११४ प्रश्न - हे भगवन् ! स्नातक, कर्म की कितनी प्रकृतियों को उदीरता है ? NTPS: ११४ उत्तर - हे गौतम! दो कर्म-प्रकृतियों की उदीरणा करता है। अथवा उदीरणा नहीं भी करता है । दो को उदीरता हुआ नाम और गोत्र "कर्म-प्रकृतियों को उदीरता है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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