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भगवती गुन-श. २५ उ. ६ लेश्या द्वार
भावार्थ-९१ प्रश्न-हे भगवन् ! निग्रंथ सलेशी होते हैं या अलेशी ? ९१ उत्तर-हे गौतम ! सलेशी होते हैं, अलेशी नहीं होते । प्रश्न-हे भगवन् ! यदि सलेशी होते हैं, तो कितनी लेश्याओं में होते हैं ? उत्तर-हे गौतम ! एक शुक्ल लेश्या में ही होते हैं।
९२ प्रश्न-सिणाए-पुच्छा। ९२ उत्तर-गोयमा ! सलेस्से वा होजा, अलेस्से वा होजा। प्रश्न-जइ सलेस्से होजा, से णं भंते ! कइसु लेस्सासु होजा ? उत्तर-गोयमा ! एगाए परमसुकलेस्साए होजा १९ । भावार्थ-९२ प्रश्न-हे भगवन् ! स्नातक सलेशी होते हैं या अलेशी ? ९२ उत्तर-हे गौतम ! सलेशी भी होते हैं और अलेशी भी होते हैं। प्रश्न-हे भगवन् ! यदि सलेशी होते हैं, तो कितनी लेश्याओं में होते हैं ? उत्तर-हे गौतम ! एक परम शुक्ल लेश्या में होते हैं।
विवेचन-पुलाक, बकुश और प्रतिसेवना-कुशील-ये तीनों, तीन विशुद्ध लेश्याओं में होते हैं अर्थात् भाव लेश्या की अपेक्षा तेजो, पद्म और शुक्ल-इन प्रशस्त लेश्याओं में होते हैं।
'कषाय-कुशील छह लेश्याओं में होते हैं ।' यद्यपि टीकाकार ने कषाय-कुशील में छह लेश्या बताते हुए कृष्णादि तीन लेश्याओं को मात्र द्रव्य-लेश्या ही बताई हैं, किन्तु द्रव्य-लेश्या भी छह और भाव-लेश्या भी छहों समझनी चाहिये । वे किस प्रकार घटित होती हैं ? इसका विवेचन प्रथम शतक के प्रथम और द्वितीय उद्देशक के विवेचन में, पाद-टिप्पण में दिया जा चुका है । जिज्ञासुओं को वहां देखना चाहिये (प्रथम भाग पृष्ठ ९१)।
स्नातक में जो एक परम शुक्ल लेश्या का कथन किया है, इसका आशय यह है कि शुक्लध्यान के तीसरे भेद के समय ही एक परम शुक्ल लेश्या होती है, दूसरे समय में तो उसमें शुक्ल लेश्या ही होती है, किन्तु वह शुक्ल लेश्या भी दूसरे जीवों की शुक्ल लेश्या की अपेक्षा परम शुक्ल लेश्या होती है।
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