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________________ ३४०२ भगवती सूत्र-श. २५ उ. ६ लेश्या द्वार ८८ उत्तर-हे गौतम ! सकषायी नहीं होते, अकषायी होते हैं। प्रश्न-हे भगवन् ! यदि अकषायी होते हैं, तो क्या उपशान्त-कषायो होते हैं या क्षीण-कषायी। उत्तर-हे गौतम ! उपशान्त-कषायी भी होते हैं और क्षीण-कषायी भी। इसी प्रकार स्नातक भी। किन्तु वे उपशांत-कषायी नहीं होते, क्षीण-कषायी होते हैं। विवेचन-कषाय द्वार में पुलाक के लिये कहा है कि वे सकषायी होते हैं, अकषायी नहीं होते, क्योंकि उनके कषायों का उपशम या क्षय नहीं होता। कषाय-कुशील के लिये जो कषायों का वर्णन किया है, उसका तात्पर्य यह है कि जब वे चार कषाय में होते हैं, तब उनके संज्वलन क्रोध, मान, माया और लोभ, ये चारों कषाय होते हैं । उपशम-श्रेणी मे या क्षपक-श्रेणी में जब संज्वलन क्रोध का उपशम या क्षय हो जाता है, तब उसके तीन कषाय होते हैं । संज्वलन मान का क्षय या उपशम हो जाने पर दो और जब माया का उपशम या क्षय हो जाता है, तब 'सूक्ष्मसंपराय' नामक दसवें गुणस्थान में केवल एक संज्वलन लोभ ही शेष रहता है। , लेश्या द्वार ८९ प्रश्न-पुलाए णं भंते ! किं सलेस्से होजा, अलेस्से होजा? ८९ उत्तर-गोयमा ! सलेस्से होजा, णो अलेस्से होज्जा । प्रश्न-जह सलेस्से होजा, से णं भंते ! कहसु लेस्सासु होजा ? उत्तर-गोयमा ! तिसु विसुद्धलेस्सासु होजा, तं जहा-तेउलेस्साए, पम्हलेस्साए, सुकलेस्साए। एवं बउसस्स वि, एवं पडिसेवणाकुसीले वि। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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