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भगवती सूत्र-श. २५ उ. ६ योग द्वार ।
- पुलाक और कषाय-कुशील के सर्व जघन्य संयम-स्थान सब से नीचे हैं । वहाँ से वे दोनों साथ-साथ असंख्य सयम-स्थानों तक जाते हैं । क्योंकि वहाँ तक उन दोनों के समान अध्यवसाय होते हैं । तत्पश्चात् पुलाक हीन परिणाम वाला होने से आगे के संयम-स्थानों में नहीं जाता, किन्तु वहाँ रुक जाता है। इसके पश्चात् कषाय-कुशील अकेला ही असंख्य संयम स्थानों तक जाता है। वहाँ से कषाय-कुशील, प्रतिसेवना-कुशील और बकुश-ये तीनों साथ-साथ असंख्य संयम-स्थानों तक जाते हैं। फिर वहाँ बकुश रुक जाता है । इसके पश्चात् प्रतिसेवना-कुशील और कषाय-कुशील ये दोनों असंख्य संयम-स्थानों तक . जाते हैं । वहाँ जा कर प्रतिसेवना-कुशील रुक जाता है । फिर कषाय-कुशील उससे आगे असंख्य संयम-स्थानों तक जाता है । वहाँ जा कर वह भी रुक जाता है । उसके पश्चात् निग्रंथ और स्नातक ये दोनों उससे आगे एक संयम-स्थान जाते हैं । इस प्रकार पुलाक, कषाय-कुशील के अतिरिक्त शेष सभी निग्रंथों के चारित्र-पर्यायों से अनन्त गुण हौन होता है। . बकुश, पुलाक से विशुद्धतर परिणाम वाला होने से अनन्त गुण अधिक होता है। बकुश, बकुश के साथ विचित्र परिणाम वाला होने से कदाचित् हीन, कदाचित् तुल्य और कदाचित् अधिक होता है। प्रतिसेवना-कुशील और कषाय-कुशील से भी इसी प्रकार हीनादि होता है । निग्रंथ और स्नातक से तो वह हीन ही होता है । प्रतिसेवना-कुशील का कथन, बकुश के समान है। कषाय-कुशील भी बकुश के समान है और पुलाक से बकुश 'अधिक कहा है, किन्तु यहां पर कषाय कुशील, पुलाक के साथ हीनादि षट्स्थान पतित कहना चाहिये, क्योंकि उसके परिणाम पुलाक की अपेक्षा हीन, तुल्य और अधिक होते हैं ।
- योग द्वार , . ८३ प्रश्न-पुलाए णं भंते ! किं सयोगी होजा, अयोगी होजा? ८३ उत्तर-गोयमा ! सयोगी होजा, णो अयोगी होज्जा ?
प्रश्न-जइ सयोगी होजा किं मणजोगी होज्जा, वयजोगी होजा, कायजोगी होज्जा ?
उत्तर-गोयमा ! मणजोगी वा होज्जा, वयजोगी वा होज्जा,
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