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भगवती सूत्र-श. २५ उ. ६ निग्रंथों का स्वरूप
'ययासूक्ष्मकुशील' है । कषायकुशील के भी ये पांच भेद हैं । ज्ञान, दर्शन, चारित्र और लिंग के लिए संज्वलन की कषाय करे, वह क्रमशः ज्ञानकुशील, दर्शनकुशील, चारित्रकुशील और लिंगकषायकुशील होता है । मन से संज्वलन कषाय करने वाला साधु यथासूक्ष्मकुशील है अथवा संज्वलन कषायवश ज्ञान, दर्शन, चारित्र और लिंग की विराधना करने वाले क्रमशः ज्ञानकुशील, दर्शनकुशील, चारित्रकुशील, लिंगकुशील हैं और मन से संज्वलन कषाय करने वाला यथासूक्ष्मकपायकुशील है । लिंगकुशील के स्थान में कहीं-कहीं 'तपकुशील' भी है।
निग्रंथ--जो मोह से रहित हो, उसे 'निग्रंथ' कहते हैं । इसके उपशान्तमोह निग्रंथ और क्षीणमोह निग्रंथ-ये दो भेद हैं । इन दोनों के भी पांच भेद हैं । यथा-प्रथम समय निग्रंथ, अप्रथम समय निग्रंथ, चरम समय निग्रंथ, अचरम समय निग्रंथ और यथासक्ष्म निग्रंथ । उपशाम्त मोह का काल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । क्षीण-मोह छद्मस्थ का काल जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है । उसके प्रथम समय में वर्तमान 'प्रथम समय निग्रंथ' और शेष समयों में वर्तमान 'अप्रथम समय निग्रंथ' कहलाता है । ये दोनों भेद पूर्वानुपूर्वी की अपेक्षा से है । इसी प्रकार उपशान्तमोह और क्षीणमोह के चरम समय में वर्तमान 'चरम समय निर्गथ' और अन्तिम समय के सिवाय शेष समयों में वर्तमान निग्रंथ - 'अचरम समय निग्रंथ' कहलाता है । ये दोनों भेद पश्चानुपूर्वी की अपेक्षा से है । प्रथम समय आदि की विवक्षा किये बिना सामान्य रूप से सभी समयों में वर्तमान निग्रंथ 'यथासूक्ष्म निग्रंथ' कहलाता है।
- स्नातक--घातिक कर्मों का विनाश कर देने से शुद्ध बना हुआ साधु 'स्नातक' कहलाता है । इसके पांच भेद हैं। यथा-अच्छवि, अशबल, अकामांश, संशुद्ध-ज्ञानदर्शनधर अरिहन्त जिन केवली और अपरिश्रावी । अच्छवि-स्नातक काय-योग का निरोध करने से छवि अर्थात् शरीर रहित अथवा व्यथा नहीं देने वाला होता है । इसके स्थान में कोई आचार्य 'अक्षपी' कहते हैं । अशबल-निरतिचार शुद्ध चारित्र को पालता है, इसलिये वह 'अशबल' होता है । अकर्माश--घातिक कर्मों का क्षय कर देने से स्नातक को 'अकर्माश' कहते हैं । संशुद्ध-ज्ञानदर्शनधर अरिहन्तजिन-केवली-दूसरे ज्ञान और दर्शन से असम्बद्ध अतएव शुद्ध निष्कलंक ज्ञान और दर्शन को धारण करने वाला होने से स्नातक संशुद्धज्ञानदर्शनधारी होता है । पूजा के योग्य होने से एवं कर्म शत्रुओं का विनाश कर देने से 'अरिहन्त, कषायों का विजेता होने से 'जिन' और परिपूर्ण ज्ञान दर्शन चारित्र का स्वामी होने से 'फेवली'
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