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भगदती सूत्र-श. २५ उ. ६ निर्गयों का स्वरूप
बनाने से जिसका चारित्र, शुद्धि और दोषों से विचित्र बना हो ।
बकुश- बकुश के दो भेद हैं-उपकरण बकुश और शरीर बकुश । विभूषा (शोभा) के लिये अकाल में चोलपट्टा आदि धोने वाला, धूपादि देने वाला, पात्रादि को रोगन आदि लगा कर चमकाने वाला साधु 'उपकरण बकुश' होता है। शरीर बकुश-विभूषा के लिए हाथ, पैर, मुंह आदि धोने वाला, आँख, कान, नाक आदि से मैल दूर करने वाला. नख, केश आदि को संवारने वाला, दाँत साफ करने वाला और इस प्रकार कायगुप्ति रहित साधु शरीर-बकुश होता है । ये दोनों प्रकार के साधु प्रभूत वस्त्रपात्रादि रूप ऋद्धि और यश के कामी होते हैं और साता-गारव वाले होते हैं, इसलिए रात-दिन के कर्तव्य अनुष्ठानों में पूरे सावधान नहीं होते हैं। इस प्रकार इनका चारित्र सर्व या देश से दीक्षा-पर्याय के छेद योग्य अतिचारों से मलीन रहता है। इन दोनों प्रकार के बकुश के पाँच भेद हैं । यथा-आभोग बकुश, अनाभोग बकुश, संवृत बकुश, असंवृत बकुश और यथासूक्ष्म बकुश । आभोग बकुश--शरीर और उपकरण की विभूषा करना साधु के लिये निषिद्ध है--यह जानते हुए भी शरीर और उपकरण की विभषा कर के चारित्र में दोष लगाने वाला साधु आभोग-बकुश है । अनाभोग बकुश-अनजान से शरीर और उपकरण की विभूषा करने
वाला साध् अनाभोग बकुथ है । संवृत बकुश-छिप कर शरीर और उपकरण की विभूषा .. कर दोष सेवन करने वाला साधु संवृत बकुश है। असंवृत बकुश--प्रकट रीति से शरीर
और उपकरण की विभूषा रूप दोष सेवन करने वाला साधु असंवृत बकुश है । यथासूक्ष्म बकुश-उत्तरगुणों के विषय में प्रकट या अप्रकट रूप से कुछ प्रमाद सेवन करने वाला साधु यथासूक्ष्म बकुश कहलाता है।
. कुशील-मूल तथा उत्तर गुणों में दोष लगाने से तथा संज्वलन कषाय के उदय से दूषित चारित्र वाला साधु 'कुशील' कहा जाता है । इसके दो भेद हैं-प्रतिसेवना कुशील
और कषायकुशील । चारित्र के प्रति अभिमुख होते हुए भी अजितेन्द्रिय एवं किसी प्रकार पिण्डविशुद्धि, समिति, भावना, तप, पड़िमा आदि उत्तरगुणों की तथा मूलगुणों की विराधना करने से सर्वज्ञ की आज्ञा का उल्लंघन करने वाला 'प्रतिसेवना-कुशील' है । संज्वलन कषाय के उदय से दूषित चारित्र वाला कषाय-कुशील हैं । कषायकुशील और प्रतिसेवनाकुशील, इन दोनों के पांच-पांच भेद हैं । यथा-ज्ञानकुशील, दर्शनकुशील, चारित्रकुशील, लिंगकुशील और यथासूक्ष्मकुशील । ज्ञान, दर्शन, चारित्र और लिंग से आजीविका कर के दोष लगाने वाला प्रतिसेवना की अपेक्षा क्रमशः ज्ञान-कुशील, दर्शन-कुशील, चारित्र-कुशील और लिंग-कुशील होता है । यह तपस्वी है'-इस प्रकार की प्रशंसा से प्रसन्न होने वाला
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