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________________ ३३३८ भगवती सूत्र-श. २५ उ. ५ आवलिका यावत् पुद्गल-परिवर्तन के समय ४ उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत् । इसी प्रकार लव, मुहूर्त, अहोरात्र, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, संवत्सर, युग, वर्षशत, (सौ वर्ष), वर्षसहस्र (हजार वर्ष), वर्षशतसहस्र (लाख वर्ष), पूर्वांग, पूर्व, त्रुटितांग, त्रुटित, अटटांग, अटट, अवांग, अवव, हूहूकांग, हूहूक, उत्पलांग, उत्पल, पांग, पद्म, नलिनांग, नलिन, अर्थनिपूरांग, अर्थनिपूर, अयुतांग, अयुत, नयुतांग, नयुत, प्रयुतांग, प्रयुत, चूलिकांग, चूलिका, शीर्षप्रहेलिकांग, शीर्षप्रहेलिका, पल्योपम, सागरोपम, अवसर्पिणी और उत्सपिणी, इन सब के समय जानना चाहिये । इनमें से प्रत्येक में असंख्यात समय होते हैं। ५ प्रश्न-पोग्गलपरियट्टे णं भंते ! किं संखेजा समया, असंखेजा समया, अणंता समया-पुन्छा। ५ उत्तर-गोयमा ! णो संखेजा समया, णो असंखेजा समया, अणंता समया । एवं तीयद्धा, अणागयद्धा, सव्वद्धा । कठिन शब्दार्थ-तीयद्धा-भूतकाल, अणागयद्धा-भविष्यत् काल । 'भावार्थ-५ प्रश्न-हे भगवन् ! पुद्गल-परिवर्तन संख्यात समय का है, असंख्यात समय का है या अनन्त समय का है ? ५ उत्तर-हे गौतम ! संख्यात समय का नहीं, असंख्यात समय का भी नहीं, परन्तु अनन्त समय का है । इसी प्रकार भूतकाल, भविष्यत्काल तथा सर्व-काल भी है। ६ प्रश्न-आवलियाओ णं भंते ! किं संखेजा समया-पुच्छा। ६ उत्तर-गोयमा ! णो संखेजा समया, सिय असंखेजा समया, सिय अणंता समया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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