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________________ भगवती सूत्र-श. २५ उ. ४ पुद्गल सकम्प-निष्कम्प अनन्त प्रदेशी स्कंध प्रदेशाथ से अनन्त गुण हैं, ७ उनसे सर्व-कम्पक असंख्यात प्रदेशी स्कंध द्रव्यार्थ से अनन्त गण हैं, ८ उनसे सर्व-कम्पक असंख्यात प्रदेशी स्कंध प्रदेशार्थ से असंख्यात गुण हैं, ९ उनसे सर्व-कम्पक संख्यात प्रदेशी स्कंध द्रव्यार्थ से असंख्यात गुण हैं, १० उनसे सर्व कम्पक संख्यात प्रदेशी स्कंध प्रदेशार्थ से संख्यात गुण हैं, ११ उनसे सर्व-कम्पक परमाणु-पुद्गल द्रव्यार्थ अप्रदेशार्थ से असंख्यात गुण हैं, १२ उनसे देश कम्पक संख्यात प्रदेशो स्कंध द्रव्यार्थ से असंख्यात गुण हैं, १३ उनसे देश-कम्पक संख्यात प्रदेशो स्कंध प्रदेशार्थ से संख्यात गुण हैं, १४ उनसे देश-कम्पक असंख्यात प्रदेशी स्कंध द्रव्यार्थ से असंख्यात गुण हैं, १५ उनसे देश-कम्पक असंख्यात प्रदेशी स्कंध प्रदेशार्थ से असंख्यात गुण हैं, १६ उनसे निष्कम्पक परमाणु पुद्गल द्रव्यार्थ अप्रदेशार्थ से असंख्यात गुण हैं, १७ उनसे निष्कम्पक संख्यात प्रदेशी स्कंध द्रव्यार्थ से संख्यात गुण है, १८ उनसे निष्कम्पक संख्यात प्रदेशी स्कंध प्रदेशार्थ से संख्यात गुण हैं, १९ उनसे निष्कम्पक असंख्यात प्रदेशी स्कंध द्रव्यार्थ से असंख्यात गुण है और २० उनसे निष्कम्पक असंख्यात प्रदेशी स्कंध प्रवेशार्थ से असंख्यात गुण हैं। विवेचन-परमाणु की निष्कम्प दशा औत्सर्गिक (स्वाभाविक) है । इसलिये : उसका उत्कृष्ट काल असंख्यात है। सकम्प दशा आपवादिक (अस्वाभाविक-कभी-कभी होने वाली) है । इसलिये वह उत्कृष्ट से भी आवलिका के असंख्यातवें भाग मात्र काल तक ही रहती है । बहुत परमाणु की अपेक्षा सकम्प दशा सर्व काल रहती है, क्योंकि भूत, भविष्गत और वर्तमान, इन तीनों कालों में भी कोई ऐसा समय नहीं था, नहीं है और नहीं होगा, जिसमें सभी परमाणु निष्कम्प रहते हों और यही बात निष्कम्प दशा के लिये भी समझनी चाहिये अर्थात् सभी परमाणु सदाकाल निष्कम्प रहते हो, ऐसी बात भी नहीं है। ___ अन्तर के विषय में स्वस्थान और परस्थान का जो कथन किया है, उसका अभिप्राय यह है कि जब परमाणु, परमाणु अवस्था में (स्कन्ध से पृथक्) रहता है, तब स्वस्थान कहलाता है और जब स्कन्ध अवस्था में होता है, तब परस्थान कहलाता है । एक परमाणु एक समय तक चलन क्रिया से बन्द रह कर फिर चलता है, तव स्वस्थान की अपेक्षा अन्तर जघन्य एक समय का होवा है और उत्कृष्ट से वही परमाणु असंख्यात काल तक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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