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________________ भगवतो सूत्र-श. १८ उ. ७ मद्रुक श्रावक का अन्य तीथियों से वाद २७२३ 'तुम्भे णं आउसो ! घाणसहगयाणं पोग्गलाणं रूपं पासह ?' णो इणढे समढे। ___ 'अत्थि णं आउसो ! अणिमहगए अगणिकाये ?' 'हंता अस्थि ।' तुम्भे णं आउसो ! अरणिसहगयस्स अगणिकायस्स रूवं पासह ?' णो इणटे समढे। अत्थि णं आउसो! समुदस्स पारगयाइं रूवाई ?"हंता अत्थि।' 'तुब्भे णं आउसो ! समुदस्स पारगयाइं रूवाइं पासह ?' णो इण8 समझे। ___ 'अत्थि णं आउसो ! देवलोगगयाइं रूवाई ?' 'हंता अस्थि ।' 'तुम्भे णं आउसो ! देवलोगगयाइं रूवाइं पासह ?' णो समढे इणटे । ___'एवामेव आउसो ! अहं वा तुम्भे वा अण्णो वा छउमत्थो जइ जो जं ण जाणइ ण पासइ तं सव्वं ण भवइ, एवं भे सुवहुए लोए ण भविस्सई' त्ति कटु ते अण्णउत्थिए एवं पडिहणइ, एवं पडिहणित्ता जेणेव गुणसिलए चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागन्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं पंचविहेणं अभिगमेणं जाव पज्जुवासइ । कठिन शब्दार्य-घाणसहगया-घ्राण सहगत (गन्ध युक्त), पडिहणइ-प्रतिहतनिरुत्तर। भावार्थ-मद्क श्रमणोपासक ने अन्यतीथिकों से कहा-'हे आयुष्मन् ! वायु बहती (प्रवाहित होती) है, क्या यह ठीक है ?' Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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