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________________ भगवती मूत्र-श. १८ उ. ७ प्रणिधान २७१९ मन-प्रणिधान, वचन-प्रणिधान और काय-प्रणिधान । ८ प्रश्न-हे भगवन् ! नैरयिक के कितने प्रकार का प्रणिधान कहा गया है ? ८ उत्तर-हे गौतम ! इसी प्रकार (तीनों) प्रणिधान होते हैं। इसी प्रकार यावत् स्तनित कुमार तक जानना चाहिये। ९ प्रश्न-हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों के विषय में प्रश्न ? ९ उत्तर-हे गौतम ! एक काय-प्रणिधान ही होता है। इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक तक जानना चाहिये। १० प्रश्न-हे भगवन् ! बेइन्द्रिय जीवों के विषय में प्रश्न ? १० उत्तर-हे गौतम ! दो प्रकार का प्रणिधान होता है । यथा-वचनप्रणिधान और काय-प्रणिधान । इस प्रकार यावत् चतुरिन्द्रिय जीवों तक समझना चाहिये । शेष सभी जीवों के यावत् वैमानिकों तक तीन प्रणिधान होते हैं। ११ प्रश्न-हे भगवन् ! दुष्प्रणिधान कितने प्रकार का कहा गया है ? ११ उत्तर-हे गौतम ! दुष्प्रणिधान तीन प्रकार का कहा गया है । यथा-मन-दुष्प्रणिधान, वचन-दुष्प्रणिधान और काय-दुष्प्रणिधान । जिस प्रकार प्रणिधान के विषय में दण्डक कहा गया है, उसी प्रकार दुष्प्रणिधान के विषय में भी कहना चाहिये। .. १२ प्रश्न-हे भगवन् ! सुप्रणिधान कितने प्रकार का कहा गया है ? १२ उत्तर-हे गौतम ! सुप्रणिधान तीन प्रकार का कहा गया है। यया-मन-सुप्रणिधान, वचन-सुप्रणिधान और काय-सुप्रणिधान। १३ प्रश्न-हे भगवन् ! मनुष्यों के कितने प्रकार का सुप्रणिधान होता है ? __ १३ उत्तर-हे गौतम ! तीनों प्रकार का सुप्रणिधान होता है। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है-' कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। तत् पश्चात् श्रमण भगवान् महावीर स्वामी यावत् बाहर जनपद (देश) में विचरने लगे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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