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________________ २७१६ भगवती सूत्र-श. १८ उ. ७ परिग्रह के भेद ४ उत्तर-गोयमा ! तिविहे उवही पण्णत्ते, तं जहा-सच्चित्ते, अचित्ते, मीसए, एवं णेरइयाण वि, एवं गिरवसेसं जाव वेमाणियाणं । कठिन शब्दार्थ-उवही-उपधि-उपकरण । भावार्थ-२ प्रश्न-हे भगवन् ! उपधि कितने प्रकार की कही गई है ? २ उत्तर-हे गौतम ! उपधि तीन प्रकार की कही गई है । यथा-कर्मो. पधि, शरीरोपधि और बाह्यभाण्डमात्रोपकरणोपधि ।। ३ प्रश्न-हे भगवन् ! नैरयिकों के उपधि कितने प्रकार की कही गई है ? ३ उत्तर-हे गौतम ! दो प्रकार की उपधि कही गई है । यथा-कर्मोपधि और शरीरोपधि । एकेन्द्रिय जीवों के सिवाय शेष सभी जीवों के यावत् वैमानिक तक तीन प्रकार की उपधि होती है । एकेन्द्रिय जीवों के दो प्रकार को उपधि होती है। यथा-कर्मोपधि और शरीरोपधि । - ४ प्रश्न-हे भगवन् ! उपधि कितने प्रकार की कही गई है ? - ४.उत्तर-हे गौतम ! उपधि तीन प्रकार की कही गई है। यथासचित्त, अचित्त और मिश्र । नरयिकों से ले कर यावत् वैमानिक तक तीनों प्रकार की उपधि होती है। विवेचन-जीवन निर्वाह में उपयोगी शरीर एवं वस्त्रादि को 'उपधि' कहते हैं । इसके दो भेद हैं। आभ्यन्तर और बाह्य । कर्म और शरीर आभ्यन्तर उपधि है । वस्त्र, पात्र, घर आदि बाह्य उपधि है। नैरयिक जीवों में सचित्त उपधि शरीर है, अचित्त उपधि उत्पत्ति स्थान है और श्वासोच्छ्वास आदि युक्त सचेतनाचेतन/रूप मिश्र उपधि है । परिग्रह के भेद ५ प्रश्न-कइविहे गं भंते ! परिग्गहे पण्णत्ते ? ५ उत्तर-गोयमा ! तिविहे परिग्गहे पण्णत्ते, तं जहा-१ कम्म Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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