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भगवती सूत्र - श. १८ उ. ७ उपधि के भेद
कि केवली, यक्ष के आवेश से आविष्ट हो कर कदाचित् दो भाषा बोलते हैं । यथा - मृषा भाषा और सत्यमृषा (मिश्र) भाषा । तो हे भगवन् ! यह कैसे हो सकता है ?
१ उत्तर - हे गौतम! अन्यतीथिकों ने जो इस प्रकार कहा है, वह मिथ्या है । हे गौतम ! इस प्रकार कहता हूँ यावत् प्ररूपित करता हूँ कि केवली, यक्ष के आवेश से आविष्ट ही नहीं होते और न दो भाषा बोलते हैं । केवली असावद्य और दूसरों को उपघात नहीं करने वाली ऐसी दो भाषा बोलते हैं- सत्यभाषा और असत्यामृषा (व्यवहार) भाषा ।
विवेचन - केवली अनन्तवीर्य सम्पन्न होने से यक्ष के आवेश से आविष्ट नहीं होते, अतएव असत्य और मृषाभाषा नहीं बोलते ।
उपधि के भेद
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२ प्रश्न - कड़विहे णं भंते ! उवही पण्णत्ते ?
२ उत्तर - गोयमा ! तिविहे उवही पण्णत्ते, तं जहा - कम्मोवही, सरीरोवही, बाहिर भण्डमत्तोवगरणोवही ।
३ प्रश्न - रइयाणं भंते ! - पुच्छा ।
३ उत्तर - गोयमा ! दुविहे उवही पण्णत्ते, तं जहा - कम्मोवही यसरीवही य, सेमाणं तिविहे उवही एगिंदियवज्जाणं जाव वेमाणियाणं । एगिंदियाणं दुविहे उवही पण्णत्ते, तं जहा - कम्मोवही य सरोवही य ।
४ प्रश्न - कइ विहे णं भंते ! उवही पण्णत्ते ?..
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