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________________ २७०२ - भगवती सूत्र-ग. १८ उ. ५ महाकर्म-अल्पकर्म पुरुष आभूषणों से अलंकृत और विभूषित हो और एक अलंकृत और विभूषित न हो, तो हे गौतम ! इन दोनों पुरुषों में कौनसा पुरुष प्रसन्नता उत्पन्न करने वाला यावत् मनोहर होता है और कौनसा नहीं होता ? क्या अलंकृत और विमूषित है वह, या जो अलंकृत और विभूषित नहीं है वह ? ' हे भगवन् ! उन दोनों पुरुषों में जो अलंकृत और विभूषित है, वह प्रसन्नता उत्पन्न करने वाला यावत् मनोहर है और जो पुरुष अलंकृत और विभूषित नहीं है, वह प्रसन्नता उत्पन्न करने वाला और मनोहर नहीं है। इसलिये हे गौसम ! वह असुरकुमार यावत् मनोहर नहीं है, ऐसा कहा गया है। २ प्रश्न-हे भगवन् ! दो नागकुमार देव एक नागकुमारावास में नागकुमार देवपने उत्पन्न हुए इत्यादि प्रश्न ? । २ उत्तर-हे गौतम ! पूर्वोक्त रूप से समझना चाहिये । इसी प्रकार . यावत् स्तनितकुमार तक जानना चाहिये और वाणव्यस्तर, ज्योतिषी और .. बैमानिक के विषय में भी इसी प्रकार जानना चाहिये। विवेचन-देव शय्या में जब देव उत्पन्न होता है, उस समय प्रथम ही प्रथम वह देव अलंकार आदि विभूषा से रहित होता हैं । इसके पश्चात् अनुक्रम से अलंकार आदि धारण कर वह विभूषित होता है । अतः यहां वैक्रिय शरीर का अर्थ 'विभूषित शरीर' है और अवैक्रिय शरीर का अर्थ 'अविभूषित शरीर' है । महाकर्म अल्पकर्म ३ प्रश्न-दो भंते ! णेरइया एगंसि णेरड्यावासंसि गेरइयत्ताए उववण्णा, तत्थ णं एगे गेरइए महाकम्मतराए चेव जाव महावेयणतराए चेच; एगे गेरइए अप्पकम्मतराए चेव जाव अप्पवेयणतराए चेव; से कहमेयं भंते ! एवं ? ३ उत्तर-गोयमा ! गेरइया दुविहा पण्णत्तातं जहा-मायिमिच्छ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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